उत्तरकाशी। 9 अगस्त 2025
धराली आपदा में राहत और बचाव कार्य अब एक कठिन मोड़ पर पहुंच गया है। मलबे के नीचे दबे लोगों को खोजने में रेस्क्यू टीमों के सामने वही चुनौती खड़ी है जो 12 नवंबर 2023 को सिलक्यारा सुरंग हादसे में देखने को मिली थी। उस समय 41 मजदूरों को बचाने के लिए देश-दुनिया की लगभग हर आधुनिक तकनीक का सहारा लिया गया था, और अंततः मानव श्रम ने ही जीत दिलाई थी।
तकनीक की परीक्षा फिर से
धराली में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं —
- मलबे की मोटाई 15 से 20 फीट है, जो पूरे मैदान पर फैला हुआ है।
- आपदा से प्रभावित क्षेत्र में थर्मल इमेजिंग कैमरा, ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार और बायोसेंसर जैसे उपकरण लगाए गए हैं, जो शरीर की गर्मी, सांस, दिल की धड़कन और ऑक्सीजन के स्तर का पता लगाकर जीवित लोगों की पहचान कर सकते हैं।
- हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि इतनी गहराई पर ये तकनीकें सीमित रूप से ही कारगर हो पाएंगी।
सिलक्यारा से धराली तक: अनुभव की गूंज
सिलक्यारा हादसे में विश्व प्रसिद्ध ऑगर मशीन से लेकर विदेशों से आए विशेषज्ञों की टीम ने रेस्क्यू ऑपरेशन में हिस्सा लिया था।
- 15 दिन चली मशक्कत के बाद, अंतिम सफलता रैट माइनर्स को हाथों से खोदाई करके मिली, जिन्होंने सुरंग में फंसे सभी 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला।
- इस कारनामे ने न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में इन श्रमिकों की बहादुरी की चर्चा कर दी थी।
धराली में भी अब संभव है कि मशीनों और मजदूरों की धीरे-धीरे खोदाई ही अंतिम विकल्प साबित हो।
आखिरी पलों की भयावहता
विशेषज्ञों के मुताबिक, गत मंगलवार को महज कुछ सेकेंड के लिए आए 15 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार वाले बहाव ने लाखों टन मलबा नीचे गिरा दिया।
- पलक झपकते ही कई लोग उसमें दब गए।
- अब यह क्षेत्र एक मैदान जैसा नजर आता है, जिस पर पानी भी बह रहा है, जिससे रेस्क्यू और भी कठिन हो गया है।
एनडीआरएफ और अन्य बलों की रणनीति
डीआईजी एनडीआरएफ गंभीर सिंह चौहान ने बताया कि —
“हमारे पास उपकरणों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस गहराई पर उनकी सफलता संदिग्ध है। फिलहाल खोजी कुत्तों की मदद से सर्च ऑपरेशन जारी है।”
रेस्क्यू टीमें अब मशीनों और मैन्युअल मेहनत के संयोजन से धीरे-धीरे मलबा हटाने की रणनीति पर काम कर रही हैं, ताकि फंसे हुए लोगों तक पहुंचा जा सके।
मानव हौसले की फिर होगी जीत?
धराली आपदा एक बार फिर साबित कर सकती है कि आपदा प्रबंधन में तकनीक जितनी अहम है, उतना ही मानव साहस, धैर्य और दृढ़ संकल्प भी है। सिलक्यारा की तरह यहां भी उम्मीद की डोर अभी टूटी नहीं है।