तारीख: 8 अगस्त 2025 | स्थान: उत्तरकाशी, उत्तराखंड
धराली में आई तबाही पर इसरो की सैटेलाइट तस्वीरों ने चौंकाने वाला सच उजागर किया है—खीर गंगा ने अपनी पुरानी राह दोबारा अपना ली है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आपदा प्रकृति का दोष नहीं, बल्कि मानव द्वारा उसकी राह में हस्तक्षेप का नतीजा है।
कैसे हुआ हादसा
वरिष्ठ भूविज्ञानी एवं एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. एम.पी.एस. बिष्ट के मुताबिक, खीर गंगा का जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट) श्रीकंठ पर्वत के ग्लेशियर से तीव्र ढाल के साथ जुड़ा है। यह निचले हिस्से में 50 से 100 मीटर तक फैला हुआ है। दशकों पहले भी यहां मलबा जमा था और उसी पर मानव बसावट हुई। हाल की जलप्रलय में मलबा फिर उसी क्षेत्र में फैल गया, यानी नदी अपने मूल स्वरूप में लौट आई।
धराली और हर्षिल घाटी की स्थिति
धराली में यह आपदा भारी तबाही का कारण बनी, जबकि एक किलोमीटर आगे स्थित हर्षिल घाटी में भी ऐसा भू-आकृतिक बदलाव हुआ, लेकिन वहां आबादी न होने के कारण कोई नुकसान नहीं हुआ।
विशेषज्ञ की चेतावनी
प्रो. बिष्ट ने चेताया कि खीर गंगा के मूल जलग्रहण क्षेत्र में अब किसी भी तरह का निर्माण न किया जाए। सरकार को इस क्षेत्र की मैपिंग कराकर निर्माण पर स्थायी प्रतिबंध लगाना चाहिए, ताकि धराली जैसी त्रासदी दोबारा न हो।
इसरो का कार्टोसेट-3: आपदा विश्लेषण का हथियार
- पैनक्रोमैटिक रेजोल्यूशन: 0.25 मीटर (25 सेमी) — दुनिया के सबसे उच्च रेजोल्यूशन वाले इमेजिंग उपग्रहों में से एक।
- मल्टीस्पेक्ट्रल रेजोल्यूशन: लगभग 1 मीटर, चार स्पेक्ट्रल बैंड के साथ।
- उपयोग:
- नगरीय योजना और संसाधन प्रबंधन
- ग्रामीण बुनियादी ढांचा और भूमि उपयोग योजना
- आपदा प्रबंधन (भूकंप, बाढ़, भूस्खलन)
- रक्षा और सीमा सुरक्षा निगरानी
सबक
धराली आपदा ने यह साबित कर दिया कि प्रकृति अपने अधिकार क्षेत्र को कभी भी पुनः हासिल कर सकती है। मानव बस्तियों को इस हकीकत को ध्यान में रखते हुए ही योजना बनानी होगी।