उत्तरकाशी, 8 अगस्त 2025
उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में आई भीषण आपदा के बाद यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने इस खतरे के बारे में एक साल पहले ही चेतावनी दी थी। वैज्ञानिकों ने उपग्रह अध्ययन के आधार पर खतरे की आशंका जताते हुए विस्तृत रिपोर्ट उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) को सौंपी थी, लेकिन अब उस रिपोर्ट का कोई अता-पता नहीं है।
वैज्ञानिकों का दावा – “रिपोर्ट दी थी, अब पता नहीं कहां है”
आईआईआरएस-इसरो (IIRS-ISRO) के वैज्ञानिकों ने अमर उजाला से बातचीत में बताया कि उन्होंने 2024 में 6133 मीटर ऊंचे श्रीकंठ पर्वत और हर्षिल घाटी का विस्तृत अध्ययन किया था। सैटेलाइट इमेज के आधार पर पता चला कि घाटी के ऊपरी हिस्से में पानी के कई छोटे-छोटे जमाव बन गए हैं। रिपोर्ट में साफ चेतावनी दी गई थी कि यदि 4000 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई पर भारी बारिश होती है, तो घाटी में भीषण तबाही आ सकती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रिपोर्ट USDMA को सौंप दी गई थी। लेकिन जब अखबार ने USDMA से संपर्क किया, तो अधिकारियों ने रिपोर्ट के बारे में अनभिज्ञता जताई।
अधिकारियों की प्रतिक्रिया
आपदा प्रबंधन और पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा, “IIRS-ISRO की ऐसी किसी रिपोर्ट की जानकारी नहीं है। वे बताएं कि कब और किसे यह रिपोर्ट सौंपी थी और क्या उसमें इस आपदा की आशंका जताई गई थी। अभी इस पर कुछ कहना संभव नहीं है।”
इसरो की तस्वीरें – तब और अब
इसरो ने आपदा से पहले और बाद की उपग्रह तस्वीरें भी जारी की हैं। 13 जून 2025 की तस्वीर में भागीरथी नदी का सामान्य बहाव दिखाई दे रहा है, जबकि 7 अगस्त 2025 की तस्वीर में नदी का रुख बदलकर उसमें मलबे का विशाल ढेर साफ नजर आ रहा है।
इतिहास भी गवाही देता है खतरे की
विशेषज्ञों के अनुसार, केवल धराली ही नहीं बल्कि पूरी हर्षिल घाटी आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है। यहां के लगभग 700 साल पुराने देवदार के जंगल मलबे के जमाव पर उगे हैं, जो यह दर्शाता है कि इस क्षेत्र में अतीत में भी बड़े पैमाने पर भूस्खलन और बाढ़ आ चुकी है।
सवाल जो बाकी हैं
अब यह सवाल उठ रहा है कि यदि वैज्ञानिकों की चेतावनी पर समय रहते कार्रवाई की गई होती, तो क्या सैकड़ों लोगों की जान और अरबों की संपत्ति बचाई जा सकती थी? और सबसे बड़ा सवाल – वह रिपोर्ट आखिर कहां गायब हो गई, जो खतरे की दस्तावेजी गवाही थी?