देहरादून, 17 अगस्त 2025।
उत्तराखंड सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े शैक्षिक संस्थानों को लेकर ऐतिहासिक फैसला लिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में सोमवार को राज्य सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक में “उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम, 2025” विधेयक को आगामी 19 अगस्त से भराड़ीसैंण में शुरू हो रहे मानसून सत्र में पेश करने की मंजूरी दी गई।
अब सभी अल्पसंख्यक समुदायों को मिलेगा लाभ
अभी तक अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा सिर्फ मुस्लिम समुदाय को प्राप्त था। लेकिन नए प्रस्तावित अधिनियम के तहत अब सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थानों को भी यह दर्जा मिलेगा। यह अधिनियम देश में अपने तरह का पहला कानून होगा, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए मान्यता प्रदान करना और शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।
अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
- राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन – जो अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को दर्जा प्रदान करेगा।
- अनिवार्य मान्यता – किसी भी मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन या पारसी समुदाय द्वारा स्थापित संस्थान को दर्जा पाने के लिए प्राधिकरण से मान्यता लेना आवश्यक होगा।
- संस्थागत अधिकारों की सुरक्षा – सरकार संस्थान के संचालन में हस्तक्षेप नहीं करेगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और उत्कृष्टता पर ध्यान दिया जाएगा।
- पंजीकरण और शर्तें – संस्थानों का सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के तहत पंजीकरण होना जरूरी होगा। भूमि, बैंक खाते और अन्य संपत्तियां संस्थान के नाम पर होनी चाहिए।
- मान्यता रद्द करने का प्रावधान – यदि वित्तीय गड़बड़ी, पारदर्शिता की कमी या धार्मिक-सामाजिक सद्भावना के खिलाफ गतिविधियां होती हैं तो मान्यता वापस ली जा सकती है।
- निगरानी और मूल्यांकन – प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि शिक्षा उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड के मानकों के अनुसार दी जाए और मूल्यांकन निष्पक्ष व पारदर्शी हो।
अधिनियम का प्रभाव
- अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को कानूनी सुरक्षा और मान्यता मिलेगी।
- शिक्षा की गुणवत्ता और उत्कृष्टता बनाए रखने पर जोर होगा।
- संस्थानों के संचालन की पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
- राज्य सरकार को संस्थानों पर निगरानी और आवश्यक निर्देश देने का अधिकार होगा।
इस फैसले को प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़े सुधारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
