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उत्तराखंड: जंगली सूअर और नीलगाय के शिकार को सशर्त अनुमति, किसानों की फसलें बचाने के लिए वन विभाग का आदेश जारी

देहरादून, 8 अगस्त 2025

उत्तराखंड में किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहे जंगली सूअर और नीलगाय की बढ़ती समस्या पर अब सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। वन विभाग ने सशर्त शिकार की अनुमति देने की प्रक्रिया स्पष्ट कर दी है। यह अनुमति केवल वन क्षेत्र के बाहर और निर्धारित शर्तों के तहत ही मान्य होगी।

मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक रंजन कुमार मिश्रा द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 (संशोधित 2022) की अनुसूची-दो में सूचीबद्ध ऐसे वन्य प्राणी, जो मानव जीवन या संपत्ति (खड़ी फसलों सहित) के लिए खतरनाक हो गए हैं, उनके शिकार की अनुमति दी जा सकती है। इस सूची में नीलगाय क्रम संख्या 1 और जंगली सूअर क्रम संख्या 23 पर शामिल हैं।

अधिकार अब क्षेत्रीय अधिकारियों को भी
पहले शिकार की अनुमति का अधिकार केवल मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के पास था, लेकिन अब ये अधिकार क्षेत्रीय वन संरक्षक, प्रभागीय वनाधिकारी, सहायक वन संरक्षक, वन क्षेत्राधिकारी, उप वन क्षेत्राधिकारी और वन दारोगा को भी दे दिए गए हैं। ये अधिकारी लिखित आदेश और कारण बताते हुए किसी व्यक्ति को निर्दिष्ट क्षेत्र में शिकार की अनुमति दे सकेंगे।


शिकार के लिए निर्धारित शर्तें

  1. स्थान – शिकार केवल वन क्षेत्र से बाहर, निजी कृषि भूमि पर ही होगा।
  2. पीछा न करना – घायल जानवर का पीछा वन क्षेत्र के अंदर नहीं किया जाएगा।
  3. निपटान – मारे गए जानवर को संबंधित वन रक्षक और स्थानीय जनप्रतिनिधि की मौजूदगी में नष्ट किया जाएगा।
  4. आवेदन प्रक्रिया – अनुमति के लिए आवेदन निकटतम प्राधिकृत अधिकारी को निर्धारित प्रारूप में करना होगा।
  5. ग्राम प्रधान की संस्तुति – आवेदन पर स्थानीय ग्राम प्रधान का अनुमोदन अनिवार्य होगा।
  6. हथियार – केवल लाइसेंसी बंदूक या राइफल का उपयोग किया जाएगा।
  7. समयसीमा – अनुमति आदेश की तिथि से एक माह के लिए मान्य होगी।
  8. कानूनी पालन – वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के सभी प्रावधानों का पालन अनिवार्य होगा।

क्यों उठाना पड़ा यह कदम
राज्य के कई हिस्सों में जंगली सूअर और नीलगाय खेतों में घुसकर किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस समस्या को लेकर जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने समय-समय पर सरकार से समाधान की मांग की थी। अब यह आदेश किसानों को फसलों की सुरक्षा का कानूनी अधिकार देगा, हालांकि इसका दायरा और नियम कड़े रखे गए हैं ताकि वन्यजीव संरक्षण के सिद्धांतों से समझौता न हो।

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