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उत्तराखंड: देहरादून-मसूरी में मियावाकी पौधरोपण योजना पर उठे सवाल, 52 लाख के खर्च की जांच शुरू | पौधों की दरें 11 गुना ज्यादा, तकनीकी अनदेखी का आरोप

देहरादून | 15 जून 2025


उत्तराखंड के देहरादून और मसूरी में लागू की गई मियावाकी पौधरोपण योजना इन दिनों विवादों में घिर गई है। तीन साल में 52 लाख रुपये खर्च करने वाली इस योजना पर बजट गड़बड़ी, तकनीकी अनदेखी और अनावश्यक खर्च को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इसके बाद वन विभाग ने मामले की जांच शुरू कर दी है


क्या है मियावाकी पौधरोपण योजना?

मियावाकी तकनीक जापान से आई एक पौधरोपण पद्धति है, जिसमें घने और तेजी से बढ़ने वाले जंगल बनाए जाते हैं। इसमें पौधों को पास-पास लगाया जाता है जिससे उनमें प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और वे तेजी से ऊंचाई पकड़ते हैं।


देहरादून वन प्रभाग में दुनिया का सबसे महंगा मियावाकी रोपण!

  • मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) कार्ययोजना द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया है कि:

    • देहरादून वन प्रभाग में 1 हेक्टेयर भूमि पर 18,333 पौधे लगाने के लिए प्रति पौधा 100 रुपये की दर से कुल 18.33 लाख रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है।

    • जबकि मानक दरें सिर्फ 10 रुपये प्रति पौधा हैं, यानी यह लागत 11 गुना अधिक है।

  • इतना ही नहीं, विभाग के पास अपनी पौधशालाएं (नर्सरी) होने के बावजूद, बाहर से पौधों की खरीद का प्रस्ताव दिया गया है, जो वित्तीय और प्रशासनिक रूप से संदिग्ध माना जा रहा है।


फेंसिंग की लागत पर भी सवाल

  • पत्र में फेंसिंग की दरों को लेकर भी आपत्ति जताई गई है।

    • मैदानी इलाकों में प्रति हेक्टेयर फेंसिंग की सामान्य लागत 1.57 लाख रुपये मानी गई है,

    • लेकिन देहरादून वन प्रभाग में इससे अधिक लागत प्रस्तावित की गई है, जो असामान्य है।


मसूरी में 4.25 करोड़ की योजना भी संदेह के घेरे में

  • मसूरी वन प्रभाग की योजना में सवा चार करोड़ रुपये का खर्च प्रस्तावित किया गया है।

  • योजना के तहत 7-8 फीट ऊंचाई के पौधों को 100 से 400 रुपये प्रति पौधे की दर से खरीदने का प्रस्ताव दिया गया।

  • जबकि मियावाकी तकनीक का सिद्धांत ही होता है कि छोटे पौधों को पास-पास लगाकर 2-3 वर्षों में उन्हें ऊंचा और सघन बनाना।

 यह तकनीकी चूक “बिना समझदारी और बिना योजना” के खर्च को दर्शाता है और एक बड़ी अनियमितता की ओर इशारा करता है।


तुलनात्मक आंकड़ा: कालसी में मात्र 15 लाख खर्च

  • देहरादून जिले के कालसी क्षेत्र में उच्चकोटी मियावाकी वन पर 5 साल में कुल 14.83 लाख रुपये खर्च हुए।

  • यह मौजूदा योजनाओं की लागत से काफी कम है, जिससे यह भी साबित होता है कि नई योजनाओं में खर्च अनुचित और बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है।


जांच और अधिकारियों की प्रतिक्रिया

  • प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन ने कहा:

    “मामले की जांच शुरू हो चुकी है। अनियमितताओं पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

  • डीएफओ देहरादून नीरज शर्मा का कहना है:

    “हम योजना को मानकों के अनुसार चला रहे हैं। सभी कार्य तकनीकी दिशा-निर्देशों के अनुरूप किए जा रहे हैं।”

  • डीएफओ मसूरी अमित कंवर बोले:

    “सीसीएफ के सवालों के बाद योजना की पुनः समीक्षा की जा रही है। जो भी खामियां होंगी, उन्हें दुरुस्त किया जाएगा।”


क्यों जरूरी है यह जांच?

  • मियावाकी पौधरोपण का उद्देश्य पर्यावरण सुधार और हरियाली को बढ़ावा देना है।

  • लेकिन यदि इस तरह के कार्यों में सरकारी धन का अपव्यय और तकनीकी समझ की कमी होगी, तो इसका असर योजना की विश्वसनीयता और पर्यावरणीय परिणामों पर भी पड़ेगा।


 निष्कर्ष:
वन विभाग की यह महत्वाकांक्षी योजना संभावनाओं से ज्यादा सवालों के घेरे में है। जांच के बाद यह स्पष्ट हो पाएगा कि यह मामला केवल प्रक्रियागत चूक था या फिर नियोजित वित्तीय गड़बड़ी। उम्मीद है कि सरकार इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगी।

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