देहरादून, 2 अगस्त 2025
उत्तराखंड की शांत, सुरम्य वादियों में इन दिनों लोकतंत्र की नई बयार बह रही है। 2025 के पंचायत चुनावों ने देवभूमि की सामाजिक और राजनीतिक ज़मीन को एक नई ऊर्जा दी है—एक ऐसा ताजा बदलाव, जिसमें परिवारवाद पर चोट भी है और गांवों में उम्मीद की लौ भी। फिल्मी गीत “ये तेरा घर, ये मेरा घर…” की तर्ज पर हर गांव में नज़ारे बदले हैं, और सियासी गलियारों में बदलाव की बयार बह रही है।
नए चेहरों की दस्तक, पुरानी लकीरों को किया पार
इस बार के पंचायत चुनाव में सबसे दिलचस्प पहलू यह रहा कि बड़ी संख्या में स्वतंत्र उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, वहीं दलों के बागियों ने भी खूब परचम लहराया। नतीजों ने न सिर्फ राजनीतिक समीकरण बदले हैं, बल्कि कई वंशवादी नेताओं को जनादेश की कसौटी पर खरा नहीं उतरने दिया।
- चमोली से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के गृह जिले में हार का स्वाद चखना पड़ा।
- विधायक महेश जीना के बेटे करन, शक्ति लाल शाह के दामाद, विधायक दिलीप सिंह की पत्नी और सरिता आर्य के बेटे – सबको करारी शिकस्त मिली।
- पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी भी अपनी कुर्सी नहीं बचा पाईं।
परिवारवाद पर जनादेश का प्रहार
भाजपा नेता खजान दास के उस बयान—”समुद्र से एक-दो लोटा पानी कम हो जाए, तो क्या फर्क पड़ता है?”—को जनमत ने चुनौती दी है। दरअसल, इस ‘एक-दो लोटा पानी’ में ही भविष्य की दिशा छिपी है। इस बार मतदाताओं ने केवल पार्टी नहीं, उम्मीदवार की पहचान और काबिलियत को प्राथमिकता दी।
कांग्रेस के लिए संजीवनी या भ्रम?
कांग्रेस खेमे में हल्की मुस्कान जरूर है, लेकिन जीतें ऐसी हैं जो परिवार की विरासत को ही आगे बढ़ाती दिखती हैं।
- अरविंद सजवाण (सूर्यवीर सिंह के बेटे),
- अभिषेक प्रीतम,
- सुनीता कुंजवाल (गोविंद सिंह कुंजवाल की बहू) –
इन्हें जीत मिली है, लेकिन यह कांग्रेस की जनस्तर पर पकड़ को लेकर कोई निर्णायक संकेत नहीं देती।
युवा चेहरों का दमदार प्रवेश: पंचायत में उमंग की बयार
इस बार का चुनाव 21 से 32 वर्ष के युवाओं के लिए खास रहा।
- मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आदर्श गांव सारकोट की प्रियंका (21) प्रधान चुनी गई हैं।
- टिहरी की कंचन और पौड़ी की साक्षी जैसे कई नाम उभरे हैं जो अपने गांव की दशा-दिशा बदलने का माद्दा रखते हैं।
ये बदलाव सिर्फ राजनीतिक नहीं हैं, ये सामाजिक मानसिकता में परिवर्तन के संकेत हैं। अब प्रधान का मतलब केवल बुजुर्ग पुरुष नहीं, शिक्षित युवा महिला भी है।
सेना, पुलिस, और कला से सेवा तक
- गुंजी से रिटायर्ड पुलिस अधिकारी विमला गुंज्याल निर्विरोध चुनी गईं।
- सेना में कर्नल रहे यशपाल सिंह नेगी ने नई जिम्मेदारी संभाली।
- स्थानीय कलाकार लच्छू पहाड़ी ने अपने क्षेत्र गरुड़ में जीत दर्ज कर जनसेवा का रास्ता अपनाया।
अब आगे क्या?
अब असली परीक्षा तब होगी जब जिला पंचायतों के अध्यक्ष चुनने की बारी आएगी। पिछली बार भाजपा ने 10 और कांग्रेस ने 2 जिलों पर कब्जा जमाया था। इस बार समीकरण पूरी तरह बदले हुए हैं, और निर्दलीय प्रत्याशियों का झुकाव ही ताज की दिशा तय करेगा।
निष्कर्ष
उत्तराखंड के पंचायत चुनाव केवल जीत-हार का खेल नहीं रहे। उन्होंने यह दिखा दिया कि राज्य का मतदाता अब चेतन हो चुका है—वह किसी के नाम या विरासत से प्रभावित नहीं, बल्कि अपने गांव और भविष्य के लिए सही विकल्प चुनना जानता है।
नई पीढ़ी मैदान में है, और देवभूमि की राजनीति में एक नई सुबह दस्तक दे रही है।