देहरादून, 2 अगस्त 2025
उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा ने आंकड़ों के लिहाज से शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन सियासी सन्देशों की बात करें तो पार्टी को परिवारवाद के मुद्दे पर करारी चोट मिली है।
जहां भाजपा प्रदेशभर में पंचायतों की सत्ता पर काबिज होती दिख रही है, वहीं पार्टी के कई दिग्गज नेताओं के परिजन चुनावी अखाड़े में टिक नहीं पाए और जनता ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया।
जीत की चमक में छिपी हार की परछाईं
भाजपा ने इस बार हरिद्वार को छोड़कर 216 जिला पंचायत सीटों पर कब्जा किया, और अगर हरिद्वार की 44 सीटें जोड़ दी जाएं तो कुल आंकड़ा 260 तक पहुंचता है। ये प्रदर्शन 2019 की तुलना में बेहतर और ऐतिहासिक कहा जा सकता है। लेकिन जब पार्टी की अंदरूनी राजनीति और उम्मीदवार चयन की बात आती है, तो तस्वीर थोड़ी धुंधली हो जाती है।
जब ‘परिवार’ बना पार्टी की कमजोरी
चुनाव प्रचार में कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाने वाली भाजपा खुद उसी जाल में उलझ गई। पार्टी के कद्दावर नेताओं ने जब अपने घर-परिवार से प्रत्याशियों को उतारा, तब जनता ने साफ संदेश दिया: नाम नहीं, काम चाहिए।
हारने वाले प्रमुख भाजपा ‘परिवारजन’—
- सरिता आर्या (विधायक, नैनीताल) के बेटे रोहित आर्या
- महेश जीना (विधायक, सल्ट) के बेटे करन जीना
- राजेंद्र भंडारी (पूर्व विधायक, बदरीनाथ) की पत्नी रजनी भंडारी
- पूरन सिंह फर्त्याल (पूर्व विधायक, लोहाघाट) की बेटी
- दिलीप रावत (विधायक, लैंसडोन) की पत्नी
- बेला तोलिया, नैनीताल की निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष
- राम सिंह कैड़ा (विधायक, भीमताल) की बहू
- गजपाल भर्तवाल (जिलाध्यक्ष, भाजपा चमोली) – सभी को जनता ने नकारा।
मतदाता का स्पष्ट संदेश: योग्यता को प्राथमिकता
जनता ने एक बार फिर दिखा दिया कि पंचायत स्तर पर अब केवल रिश्तों और चेहरों की राजनीति नहीं चलेगी। स्थानीय मुद्दों, कार्यशैली और व्यक्ति की छवि चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाले बड़े कारक रहे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि भाजपा ने पारिवारिक रिश्तों के बजाय ज़मीनी कार्यकर्ताओं या लोकप्रिय चेहरों को टिकट दिया होता, तो परिणाम और बेहतर हो सकते थे।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने गिनाईं उपलब्धियां
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने परिणामों को लेकर उत्साह जताया और कहा:
“यह जीत सिर्फ सांख्यिकीय नहीं, बल्कि राजनीतिक और संगठनात्मक मजबूती का संकेत है। सभी जिलों में भाजपा का बोर्ड बनने जा रहा है। यह सीएम पुष्कर सिंह धामी सरकार की पंचायत स्तर पर अब तक की सबसे बड़ी सफलता है।”
कांग्रेस को मिला परिवारवाद में समर्थन, भाजपा को मिला विरोध
यह भी दिलचस्प रहा कि जहां भाजपा के परिजन हारे, वहीं कांग्रेस के नेताओं के बेटे-बेटियों ने जीत दर्ज की।
प्रीतम सिंह के बेटे अभिषेक सिंह, शूरबीर सजवाण के बेटे अरविंद, गोविंद कुंजवाल की बहू सुनीता कुंजवाल – इन सभी को मतदाताओं ने स्वीकार किया।
यह विरोधाभास भाजपा के लिए सोचने का विषय है।
निष्कर्ष: भाजपा को सबक, संगठन को चेतावनी
भले ही भाजपा ने पंचायत चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया हो, लेकिन यह जीत पूर्ण संतोष की स्थिति नहीं है।
पार्टी को यह समझना होगा कि पारिवारिक समीकरण नहीं, ज़मीनी हकीकत ही जीत दिला सकती है।
2027 की ओर बढ़ते हुए भाजपा को टिकट वितरण, स्थानीय नेतृत्व और उम्मीदवार चयन जैसे बिंदुओं पर नए सिरे से मंथन करना होगा।
जनता का संदेश साफ है: ‘जनप्रतिनिधि चाहिए, जनसंपर्क नहीं; परिवार से नहीं, प्रतिभा से भरोसा चाहिए।’