देहरादून | 11 जून 2025
उत्तराखंड की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। राज्य की त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव अब केवल प्रशासनिक प्रक्रिया भर नहीं, बल्कि मिशन 2027 की राजनीतिक रणनीति का महत्वपूर्ण अध्याय बन चुके हैं। सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी कांग्रेस, दोनों दल मैदान में पूरी ताकत के साथ उतरने को तैयार हैं — और इस बार मुकाबला गांव-गांव, बूथ-बूथ तक पहुंचेगा।
भाजपा की रणनीति: संगठन को गांव-गांव तक मजबूत करना
पिछले नगर निकाय चुनाव में मिली बढ़त से उत्साहित भाजपा अब पंचायत चुनाव को ग्रामीण सत्ता पर पकड़ मजबूत करने का अवसर मान रही है। पार्टी की योजना है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत और क्षेत्र पंचायत में अपने समर्थित प्रतिनिधियों को चुनाव मैदान में उतारा जाए, ताकि संगठन की जड़ें और गहरी हो सकें।
हालांकि, ग्राम व क्षेत्र पंचायत स्तर पर अधिकृत प्रत्याशी नहीं, बल्कि पार्टी समर्थित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया है। वहीं, जिला पंचायतों में भाजपा अधिकृत प्रत्याशी उतारेगी और जल्द ही पूरे राज्य में पंचायत स्तरीय बैठकों की श्रृंखला शुरू करने जा रही है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा:
“पार्टी चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। हम हर पंचायत में संगठनात्मक पकड़ बनाएंगे, ताकि मिशन 2027 के लिए मजबूत आधार तैयार हो।”
कांग्रेस का फोकस: गांवों में संगठन की पुनर्स्थापना
कांग्रेस की नजर इस चुनाव को गांवों में कार्यकर्ता नेटवर्क को पुनः जीवित करने के मौके के तौर पर देख रही है। पार्टी को शहरी निकाय चुनाव में भले ही निर्णायक बढ़त न मिली हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों से सटे निकायों में प्रदर्शन में सुधार को वह राजनीतिक संकेत मान रही है।
पार्टी अब गांव-गांव में सर्वोदय संकल्प शिविर आयोजित करेगी और आरक्षण निर्धारण प्रक्रिया पर कड़ी नजर रखेगी, ताकि कोई गड़बड़ी या पक्षपात न हो। इसके साथ ही जिलों में नियुक्त प्रभारी, क्षेत्रीय दौरे कर रिपोर्ट सौंपेंगे कि किस तरह त्रिस्तरीय पंचायतों में कांग्रेस की स्थिति बेहतर की जा सकती है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा:
“हम पहले से ही तैयारी कर रहे हैं। आरक्षण प्रक्रिया में किसी भी नियम उल्लंघन पर कांग्रेस सतर्क रहेगी और गांवों में अपनी जमीन मजबूत करेगी।”
चुनाव केवल पंचायत के नहीं, सत्ता की दिशा तय करेंगे
इन चुनावों को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पंचायत चुनाव दरअसल मिशन 2027 की नींव हैं।
प्रदेश के 47.32 लाख ग्रामीण मतदाता, नगर निकायों के 30.63 लाख मतदाताओं की तुलना में कहीं अधिक हैं।
इसका सीधा अर्थ है कि पंचायत चुनाव का जनाधार कहीं ज्यादा बड़ा और राजनीतिक तौर पर निर्णायक है।
इसीलिए भाजपा और कांग्रेस, दोनों दल गांवों में स्थानीय नेतृत्व गढ़ने, जमीनी कार्यकर्ता तैयार करने और बूथ लेवल नेटवर्क मजबूत करने के लक्ष्य के साथ मैदान में उतरेंगे।
आरक्षण प्रक्रिया ने बढ़ाई हलचल
पंचायत चुनाव की तैयारी में सबसे पहले ओबीसी और अन्य वर्गों के लिए आरक्षण निर्धारण प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
इस प्रक्रिया के शुरू होते ही राजनीतिक दलों में हरकत तेज हो गई है। जिला प्रशासन की ओर से भी समय-सारिणी जारी की जा रही है, और अब प्रत्याशियों की रणनीति से लेकर प्रचार की रूपरेखा तक तैयार की जा रही है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड के गांव इस बार केवल सरपंच या बीडीसी नहीं चुनने जा रहे, बल्कि अगली सरकार के लिए सियासी संकेत भी देने जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए यह चुनाव संगठन की सेहत, जमीनी पकड़ और जनभावना की दिशा को परखने का सबसे बड़ा मौका है। अब देखना यह है कि गांव की गलियों से उठती आवाज़ें किस दल की ओर इशारा करती हैं।