देहरादून।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक हाई-प्रोफाइल ठगी का मामला सामने आया है। पूर्व विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन की पत्नी देवयानी सिंह से निवेश का झांसा देकर 47.75 लाख रुपये की धोखाधड़ी की गई। इस जालसाजी में शामिल आरोपियों ने न केवल फर्जी दस्तावेज बनाए, बल्कि देवयानी सिंह के नकली हस्ताक्षर का इस्तेमाल करते हुए रकम को एक कथित फर्जी कंपनी के खाते में ट्रांसफर करवा लिया।
अब डालनवाला कोतवाली पुलिस ने तीन आरोपितों के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। देवयानी सिंह, जो स्वयं भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य और हरिद्वार जिला पंचायत की तीन बार निर्वाचित सदस्य रह चुकी हैं, ने आरोपियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं।
क्या है पूरा मामला?
देवयानी सिंह ने पुलिस को दी गई तहरीर में बताया कि उनके राजनीतिक और सामाजिक जुड़ाव के चलते अक्सर कई लोगों से मुलाकात होती रहती है। इसी क्रम में देहरादून निवासी प्रदीप अग्रवाल, उसके पुत्र परिश अग्रवाल और भतीजे सन्नी अग्रवाल उनके संपर्क में आए।
तीनों ने उन्हें एक आकर्षक निवेश योजना का प्रस्ताव दिया और लगातार विश्वास में लेकर धीरे-धीरे 47.75 लाख रुपये की रकम अलग-अलग तिथियों में अपनी एक फर्जी कंपनी के खाते में ट्रांसफर करवा ली।
फर्जी दस्तावेज और डीड से ठगी
धोखाधड़ी यहीं तक सीमित नहीं रही। आरोप है कि तीनों ने मिलकर देवयानी सिंह के नकली हस्ताक्षर कर एक डीड तैयार की, जो एक फर्जी कंपनी “शिवम माइन्स एंड मिनरल्स” के नाम से बनाई गई थी।
इस डीड के आधार पर ही उन्होंने रकम कंपनी के खाते में ट्रांसफर करवाई। देवयानी को जब निवेश से कोई लाभ नहीं मिला, तो उन्होंने अपनी मूल राशि वापस मांगी, लेकिन आरोपियों ने बहानेबाजी शुरू कर दी और रकम लौटाने से इनकार कर दिया।
पहले से हैं आपराधिक रिकॉर्ड
देवयानी सिंह को बाद में पता चला कि तीनों आरोपियों पर पहले से ही कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इस जानकारी के बाद उन्होंने अपने परिचित एसएल पंवार से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें बताया कि उनके नाम से की गई डीड भी पूरी तरह कूट रचित और फर्जी है।
पुलिस ने दर्ज किया मुकदमा
डालनवाला क्षेत्राधिकारी अनुज कुमार ने पुष्टि की है कि प्रदीप, परिश और सन्नी अग्रवाल के खिलाफ धारा 420 (धोखाधड़ी), 467, 468, 471, 120B के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है और जांच प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है।
पुलिस का कहना है कि जल्द ही आरोपियों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जाएगी और आर्थिक लेनदेन व दस्तावेजों की कानूनी वैधता की गहराई से जांच की जाएगी।
निष्कर्ष
यह मामला केवल एक व्यक्ति को ठगने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे सुनियोजित तरीकों से फर्जी कंपनियां बनाकर निवेशकों को निशाना बनाया जा रहा है। यह घटना न केवल राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चौंकाने वाली है, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी चेतावनी है कि किसी भी निवेश योजना में भाग लेने से पहले उसकी पृष्ठभूमि, वैधता और प्रमाणीकरण की पूरी जांच कर लें।
सरकार और पुलिस प्रशासन के लिए भी यह केस एक संकेत है कि फर्जी कंपनियों और आर्थिक अपराधों पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता अब और भी ज्यादा हो गई है।