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उत्तराखंड में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं बनी चिंता का विषय, हाईवे किनारे ट्रामा सेंटरों की सख्त जरूरत

देहरादून। उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है और इसके साथ ही हादसों में मौतों की संख्या भी बढ़ रही है। राज्य में हर वर्ष ऐसी सड़क दुर्घटनाएं सामने आती हैं जिनमें समय पर इलाज न मिलने के कारण दर्जनों लोग दम तोड़ देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि घायलों को हादसे के तुरंत बाद चिकित्सा सहायता मिल जाए तो कई जानें बचाई जा सकती हैं।

इसी गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए राज्य सड़क सुरक्षा समिति ने स्वास्थ्य विभाग से हाईवे किनारे ट्रामा सेंटर स्थापित करने का अनुरोध किया है। फिलहाल राज्य में जो ट्रामा सेंटर हैं, वे केवल जिला अस्पतालों में मौजूद हैं, जो अधिकांशतः नेशनल हाईवे या प्रमुख सड़कों से काफी दूर हैं। ऐसे में हादसे के बाद घायलों को मौके से अस्पताल तक पहुंचाने में जो देरी होती है, वह जानलेवा साबित हो रही है।

‘स्वर्णिम समय’ या गोल्डन आवर का सिद्धांत कहता है कि दुर्घटना के एक घंटे के भीतर इलाज शुरू हो जाए तो मरीज के बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने देश के सभी राज्यों को निर्देश दिए थे कि वे अपने यहां हाईवे पर हर 100 किलोमीटर के भीतर ट्रामा सेंटर की व्यवस्था करें। उत्तराखंड में इस दिशा में कुछ कदम तो उठे, लेकिन वे अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके क्योंकि ट्रामा सेंटर हाईवे के पास न बनाकर जिला अस्पतालों में ही सीमित कर दिए गए।

शुरुआती वर्षों में इन केंद्रों को लेकर विभाग ने अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाई। बाद में जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित केंद्रीय सड़क सुरक्षा समिति ने राज्यों पर दबाव डाला, तब जाकर जिला अस्पतालों को ट्रामा सेंटर के रूप में चिह्नित किया गया। हालांकि, ये केंद्र वास्तविक उद्देश्य को पूरा करने में असफल रहे क्योंकि वे घटनास्थल के निकट नहीं हैं।

अब राज्य स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति ने एक बार फिर इस दिशा में पहल की है। समिति ने स्वास्थ्य विभाग को पत्र भेजकर हाईवे से सटे इलाकों में पूर्ण सुविधा युक्त ट्रामा सेंटर स्थापित करने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि इससे हादसों के तुरंत बाद घायलों को जरूरी चिकित्सा दी जा सकेगी और मौतों की संख्या में कमी लाई जा सकेगी।

उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में जहां सड़कों की स्थिति और दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचना स्वयं में चुनौती है, वहां हाईवे किनारे ट्रामा सेंटरों की स्थापना अब वक्त की मांग बन चुकी है।

 

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