स्थान: देहरादून, उत्तराखंड | तारीख: 05 दिसम्बर 2025
उत्तराखंड में मौसम भले ही तेजी से ठंड पकड़ रहा हो, लेकिन राजनीति का तापमान उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से अधिक समय बचा है, फिर भी राज्य की राजनीति में ऐसा माहौल बन गया है मानो चुनाव सिर पर हों।
नेताओं के विवादित बयान, व्यक्तिगत आरोप, पुराने विवादों की दुबारा कुरेद—सारी बातें उत्तराखंड के शांत राजनीतिक वातावरण में अनावश्यक गर्मी पैदा कर रही हैं।
बयानबाज़ी से बिगड़ रहा राजनीतिक मिजाज
कांग्रेस में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी मिलने के बाद कुछ भाजपा नेताओं ने कांग्रेस नेता डॉ. हरक सिंह रावत की निष्ठा पर सवाल खड़े किए।
वहीं, हरक सिंह भी अपने पुराने अंदाज में सीधे और तीखे शब्दों में जवाब दे रहे हैं।
दोनों तरफ से जारी इस बयान युद्ध में:
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वरिष्ठ नेताओं के निजी किस्से
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पुराने राजनीतिक रिश्तों का खुलासा
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व्यक्तिगत हमले
राजनीतिक माहौल को और भी अशांत बना रहे हैं।
हरक सिंह की बेबाकी—पुराने साथी भी निशाने पर
हरक सिंह रावत लंबे समय तक भाजपा में रहने के कारण कई नेताओं के बेहद करीब रहे।
लेकिन हालिया राजनीतिक तकरार में उन्होंने:
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पूर्व मुख्यमंत्रियों
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पूर्व केंद्रीय मंत्रियों
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भाजपा के वरिष्ठ नेतृत्व
के बारे में ऐसी निजी और संवेदनशील बातें कही हैं, जो जनता को पसंद नहीं आ रही हैं।
जनता के एक बड़े वर्ग का कहना है कि अपने ही पुराने साथियों पर इस तरह की बयानबाज़ी राजनीतिक शिष्टाचार के विरुद्ध है।
दूसरी तरफ, भाजपा नेताओं द्वारा हरक सिंह की कांग्रेस में वापसी के बाद उनकी वफादारी पर सवाल उठाना भी लोगों को अखर रहा है।
‘हरदा’ पर बोले—अब 36 नहीं, 63 का रिश्ता
हरक सिंह रावत ने अपने बयान में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (हरदा) के साथ संबंधों को स्पष्ट किया।
उन्होंने कहा:
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जैनी प्रकरण भाजपा की साज़िश थी
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जिस लड़की को वे जानते तक नहीं थे, उसे नौकरी समेत कई लालच देकर उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया
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उनके राजनीतिक करियर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई
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लेकिन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के कहने पर उन्होंने सब माफ कर दिया
हरक सिंह ने यहां तक कहा —
“हरीश रावत मेरे बड़े भाई हैं। हमारे बीच 36 का नहीं, अब 63 का रिश्ता है। वर्तमान में ‘रावत स्क्वायर’ हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत और महेंद्र भट्ट ने उनके बारे में गलत बोलना शुरू किया, इसलिए उन्हें जवाब देना पड़ा।
राजनीतिक पारा चुनाव से पहले ही आसमान पर
उत्तराखंड की राजनीति में ऐसी बयानबाज़ी इसका संकेत है कि आगामी चुनाव भले ही दूर हों, लेकिन पार्टी रणनीतियां और टकराव अभी से तेज़ होने लगे हैं।
जहां जनता महंगाई, सड़क, स्वास्थ्य, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर चर्चा चाहती है, वहीं नेता निजी हमलों में उलझते जा रहे हैं।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस तरह के बयान न केवल माहौल बिगाड़ते हैं बल्कि आने वाले समय में चुनावी बहसों को मूल मुद्दों से भटका सकते हैं।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में सर्दी बढ़ी है, लेकिन राजनेताओं की तीखी बयानबाज़ी ने माहौल में अनचाही गर्मी और उमस भर दी है।
चुनाव अभी दूर हैं, पर राजनीतिक उठापटक, व्यक्तिगत हमले, और पुराने विवादों के खुलासे यह संकेत दे रहे हैं कि आने वाला समय और भी गरमागरम होने वाला है।
जनता चाहती है कि नेता व्यक्तिगत कटाक्षों से ऊपर उठकर राज्य के विकास, बेरोज़गारी, पर्यटन, पर्वतीय समस्याओं और स्थानीय मुद्दों पर फोकस करें।


