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उत्तराखंड में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का आधा अधूरा क्रियान्वयन: पाठ्यपुस्तकें गायब, ढांचा अधूरा, फैकल्टी की कमी बनी बाधा

देश में सबसे पहले NEP लागू करने वाला राज्य, लेकिन प्राथमिक शिक्षा में अब भी मूलभूत तैयारी अधूरी

देहरादून | 29 जुलाई 2025

उत्तराखंड भले ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके दावों को पीछे छोड़ती नजर आ रही है। पांच साल बीतने के बावजूद कक्षा 1 से 5 तक की पाठ्यपुस्तकें अब तक तैयार नहीं हो पाई हैं, और उच्च शिक्षा से लेकर स्कूल स्तर तक कई बड़े ढांचे अधूरे हैं।


क्या-क्या नहीं हुआ अब तक:

  • कक्षा 1 से 5 तक की किताबें अभी तक तैयार नहीं
  • कक्षा 9 से 12 तक सेमेस्टर सिस्टम लागू नहीं
  • फैकल्टी की भारी कमी, छात्रों को विषय चुनने की स्वतंत्रता अधूरी
  • स्कूल मानक प्राधिकरण (SSA) का गठन अब तक नहीं हुआ
  • SCERT और DIET के लिए अलग कैडर नहीं बना
  • राज्य पाठ्यचर्या रूपरेखा तैयार होने के बावजूद अनुमोदन लंबित

शिक्षा ढांचे में ‘5+3+3+4’ फॉर्मूले पर ठहराव

NEP के अनुसार स्कूली शिक्षा का ढांचा 5+3+3+4 में बांटा गया है —

  • 5 साल: फ़ाउंडेशन स्टेज (बालवाटिका से कक्षा 2 तक)
  • 3 साल: प्रिपरेटरी स्टेज (कक्षा 3-5)
  • 3 साल: मिडिल स्टेज (कक्षा 6-8)
  • 4 साल: सेकेंडरी स्टेज (कक्षा 9-12)

लेकिन इस पूरे ढांचे पर अभी कोई ठोस काम नहीं हुआ है, जबकि यह नीति के मूल आधारों में से एक है।


बालवाटिका नामकरण, लेकिन जिम्मेदारी स्पष्ट नहीं

राज्य सरकार ने 4447 आंगनबाड़ी केंद्रों का नाम बदलकर ‘बालवाटिका’ तो कर दिया है, लेकिन

  • ये अब भी महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग के अधीन हैं
  • विद्यालयी शिक्षा विभाग की भूमिका स्पष्ट नहीं

उच्च शिक्षा में भी अधूरा क्रियान्वयन

NEP के तहत कॉलेजों में छात्रों को बहुविषयक विकल्प चुनने की सुविधा दी गई है।
लेकिन —

  • कई विषयों में फैकल्टी की भारी कमी है
  • शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण प्रक्रिया सुस्त है
    जिससे छात्रों को मिलने वाली ‘स्वतंत्रता’ सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है।

स्थानीयता को लेकर उठाया गया एक सकारात्मक कदम

राज्य शिक्षा विभाग ने ‘हमारी विरासत एवं विभूतियां’ नामक पुस्तक तैयार की है, जो स्थानीय संस्कृति और गौरवशाली व्यक्तित्वों को स्कूली पाठ्यक्रम से जोड़ने की पहल है। लेकिन यह प्रयास भी मुख्यधारा की शिक्षा के ढांचे में अभी जगह नहीं बना सका है।


विशेषज्ञों की राय

शिक्षाविदों का मानना है कि —

“नीति लागू करना केवल तारीखों में नहीं, ज़मीन पर बदलाव लाने में मायने रखता है। जब तक बुनियादी तैयारी — किताबें, फैकल्टी, ढांचा और नीति अनुमोदन — पूरी नहीं होती, तब तक NEP का असर छात्रों तक नहीं पहुंचेगा।”


सारांश: कागजों पर अग्रणी, जमीनी हकीकत में पीछे

उत्तराखंड सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सबसे पहले लागू करने का तमगा तो पा लिया, लेकिन

  • न पाठ्यपुस्तकें तैयार
  • न ढांचा स्पष्ट
  • न फैकल्टी पूरी
  • न स्कूलों का प्रबंधन तय

अब ज़रूरत है दिखावे से आगे बढ़कर NEP को व्यवहारिक रूप में छात्रों तक पहुंचाने की। जब तक नीति ज़मीन पर नहीं उतरेगी, तब तक बदलाव सिर्फ घोषणा ही रहेगा।

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