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उत्तराखंड में रिवर्स पलायन की सकारात्मक लहर: सात वर्षों में 5000 से ज्यादा लोग लौटे गांव, स्वरोजगार से बदली तस्वीर

देहरादून।
जहां एक ओर उत्तराखंड के गांव सालों से खाली हो रहे थे, वहीं अब एक नई उम्मीद की किरण उभर रही है। पलायन निवारण आयोग के ताजा सर्वे में सामने आया है कि पिछले सात वर्षों में 5000 से अधिक लोग अपने गांव लौट चुके हैं और गांव में रहकर स्वरोजगार कर रहे हैं। यह आंकड़ा पलायन के विरुद्ध एक मजबूत सामाजिक संकेतक बनकर उभरा है।

अब आयोग इन प्रवासियों के अनुभवों को जानकर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा, जिससे स्वरोजगार योजनाओं में सुधार कर और अधिक लोगों को गांवों में रोका जा सके। राज्य सरकार ने इस दिशा में नीति स्तर पर सक्रियता दिखाते हुए, रिवर्स पलायन को अपनी विकास नीति का अहम हिस्सा बनाया है।


गांव से शहर, फिर गांव की ओर वापसी

उत्तराखंड के हजारों युवा और परिवार बेहतर शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में गांव छोड़कर शहरों या दूसरे राज्यों में बस गए थे। पलायन के चलते प्रदेश के 1726 गांव पूरी तरह जनविहीन हो चुके हैं, जबकि कई गांवों की जनसंख्या अब नाममात्र ही रह गई है।

लेकिन हालिया सर्वे की रिपोर्ट उत्साहजनक है—जिन्होंने वापस लौटने का फैसला लिया है, वे आज कृषि, बागवानी, डेयरी, पशुपालन, दुकानदारी, होमस्टे और छोटे उद्यमों के माध्यम से खुद को आत्मनिर्भर बना चुके हैं। उनका लक्ष्य न केवल जीविकोपार्जन है, बल्कि गांवों में नई जान फूंकना भी है।


सर्वे के प्रमुख बिंदु:

  • 5000+ प्रवासी गांव लौट चुके हैं और स्वरोजगार कर रहे हैं।
  • सर्वे अभी जारी है; अंतिम रिपोर्ट आने के बाद नीति में बदलाव संभव।
  • रोजगार आधारित जीवन शैली को अपनाने वालों में आत्मविश्वास और संतोष देखा गया है।
  • राज्य सरकार अब जिलेवार संवाद कार्यक्रम शुरू कर चुकी है, ताकि इन लोगों के अनुभवों के आधार पर योजनाओं को और प्रभावी बनाया जा सके।

पौड़ी से संवाद की शुरुआत

रिवर्स पलायन करने वालों से संवाद की शुरुआत पौड़ी से हो रही है। 6 अगस्त से दो दिवसीय संवाद कार्यक्रम का आयोजन ग्राम्य विकास विभाग के ईटीसी सभागार में होगा, जिसमें जिले के करीब 800 रिवर्स माइग्रेंट्स शामिल होंगे।

यह पहल नीति निर्माण के लिए अहम साबित हो सकती है, क्योंकि इन लोगों के अनुभव राज्य के सामने वास्तविक चुनौतियों और अवसरों को उजागर करेंगे।


आयोग की प्रतिक्रिया

पलायन निवारण आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी ने बताया,

“राज्य में बड़ी संख्या में लोग रिवर्स पलायन कर गांव लौट रहे हैं। हमने अब संवाद की श्रृंखला शुरू की है ताकि उनके अनुभवों और सुझावों के आधार पर स्वरोजगार नीतियों को और सशक्त बनाया जा सके।”


सरकार की रणनीति: रोजगार से ही रुकेगा पलायन

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर यह सर्वे कराया जा रहा है। राज्य सरकार का मानना है कि अगर गांवों में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की मजबूत व्यवस्था की जाए, तो पलायन को रोका जा सकता है। सरकार अब योजनाओं को “गांव-केंद्रित विकास मॉडल” की ओर मोड़ने की तैयारी में है।


निष्कर्ष:

उत्तराखंड के लिए रिवर्स पलायन सिर्फ एक सामाजिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बनता जा रहा है। अगर सरकार समय रहते इन लौटे प्रवासियों के अनुभवों को सुनकर स्थायी और स्थानीय स्तर पर आधारित नीति बनाती है, तो उत्तराखंड के गांव फिर से आबाद हो सकते हैं।

यह बदलाव “गांव छोड़ो” से “गांव लौटो” की ओर बढ़ते उत्तराखंड की कहानी बन सकता है।

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