तारीख – 21 नवंबर 2025 | स्थान – देहरादून, उत्तराखंड
उत्तराखंड में ठोस कचरे का पहाड़, प्रबंधन व्यवस्था सवालों के घेरे में
उत्तराखंड में हर दिन लगभग 1600 से 1800 टन कचरा निकल रहा है। लेकिन इसके उठान, संग्रहण और निस्तारण को लेकर कई गंभीर खामियां सामने आ रही हैं।
दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर तथा स्पैक्स द्वारा ‘द देहरादून डायलॉग’ के तहत आयोजित तीसरे व्याख्यान ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में यह बड़ा मुद्दा खुलकर सामने आया।
भारत में 1.6 लाख टन रोज कचरा – सिर्फ 20–25% होता है प्रोसेस
वेस्ट वारियर्स सोसाइटी के प्रतिनिधियों मयंक शर्मा और नवीन कुमार सडाना ने बताया कि—
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भारत में प्रतिदिन 1.6 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है
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इसमें से 60% ही संग्रहित हो पाता है
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मात्र 20–25% कचरा ही प्रोसेस/रिसोर्स हो पाता है
उन्होंने चेताया कि इतनी बड़ी मात्रा में अनछुए कचरे का ढेर आगे चलकर गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट बन सकता है।
पर्वतीय भूगोल ने बढ़ाई मुश्किलें
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड में कचरा प्रबंधन को लेकर चुनौतियाँ और भी ज्यादा हैं। कारण—
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पर्वतीय भूगोल
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सीमित भूमि उपलब्धता
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कठिन परिवहन
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मौसम संबंधी बाधाएं
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पर्यटन का भारी दबाव
इन सभी वजहों से कचरा उठान, पृथक्करण और निस्तारण की प्रक्रिया और जटिल हो जाती है।
विशेषज्ञों ने प्लास्टिक लोड, विरासत कचरे (Legacy Waste) और बढ़ती लैंडफिल निर्भरता को तुरंत सुधार की जरूरत वाला क्षेत्र बताया।
व्याख्यान में शामिल हुए विशेषज्ञ और संस्थान
कार्यक्रम में कई पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद शामिल रहे—
चंद्रशेखर तिवारी, हरी राज सिंह, रानू बिष्ट, डॉ. विजय गंभीर, डॉ. बृज मोहन शर्मा, बलेन्दु जोशी, राम तीरथ मौर्या और डॉ. यशपाल सिंह।
इसके अलावा छात्र–छात्राओं में—
फूलचंद नारी शिल्प इंटर कॉलेज, माया देवी यूनिवर्सिटी और पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के युवा भी मौजूद रहे।
कचरा कम करने के लिए—100% पृथक्करण ही समाधान
विशेषज्ञों ने ज़ोर दिया कि—
अगर घर, संस्थान और बाजारों में 100% स्रोत-स्तर पर कचरा पृथक्करण लागू कर दिया जाए,
तो राज्य का लगभग 40–50% कचरा स्थानीय स्तर पर ही निपट सकता है।
इससे लैंडफिल पर निर्भरता कम होगी और पर्यावरणीय क्षति भी घटेगी।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में बढ़ता कचरे का पहाड़ न सिर्फ पर्यावरण, बल्कि जनस्वास्थ्य और पर्यटन संरचना के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। विशेषज्ञों की राय स्पष्ट है—
यदि अभी से कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में राज्य एक बड़े कचरा संकट का सामना करेगा।
स्रोत-स्तर पर पृथक्करण, कचरा कम करने की नीति और आधुनिक प्रोसेसिंग प्लांट ही इस दिशा में पहला ठोस कदम साबित होंगे।


