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उत्तराखंड में शीतकालीन यात्रा को मिल रहा नया आयाम, पूजा स्थलों में बढ़ी आस्था की रौनक

देहरादून | 9 दिसंबर 2025

चारधाम यात्रा के शीतकालीन अवकाश के बाद भी उत्तराखंड की धार्मिक आस्था थमी नहीं है। बदरीनाथ और केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बावजूद उनके शीतकालीन पूजा स्थलों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगातार बढ़ रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी के बीच देवभूमि की परंपरागत शीतकालीन पूजा ने श्रद्धा और पर्यटन—दोनों को नई दिशा दी है।


शीतकालीन पूजा स्थलों में हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति

बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक पांडुकेश्वर, ज्योतिर्मठ और ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में कुल 3567 से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं।
केदारनाथ व मद्महेश्वर की शीतकालीन गद्दीस्थली ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ में ही अब तक 3215 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए हैं।


योग बदरी और नृसिंह मंदिर में भी उमड़ी श्रद्धा

बदरीनाथ धाम की शीतकालीन पूजा स्थली योग बदरी (पांडुकेश्वर) में 57 श्रद्धालुओं, जबकि नृसिंह मंदिर, ज्योतिर्मठ में 257 श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की।
इन स्थलों पर नियमित पूजा, विशेष आरती और धार्मिक अनुष्ठान श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहे हैं।


राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान, श्रद्धालुओं में उत्साह

बीकेटीसी अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने बताया कि धामों के कपाट बंद होने के बाद भी पारंपरिक शीतकालीन पूजा को लेकर श्रद्धालुओं का उत्साह लगातार बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि इस वर्ष उत्तराखंड की शीतकालीन यात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिली है।


प्रधानमंत्री के उल्लेख से बढ़ा देश-विदेश में आकर्षण

गत 30 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उत्तराखंड के शीतकालीन पूजा स्थलों का उल्लेख किए जाने के बाद देश-विदेश से श्रद्धालुओं की रुचि और अधिक बढ़ी है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मार्गदर्शन में राज्य सरकार शीतकालीन यात्रा को निरंतर प्रोत्साहित कर रही है।


प्रशासन और मंदिर समिति ने कसी कमर

मंदिर समिति व जिला प्रशासन की ओर से यात्रियों की सुविधा के लिए आवास, सुरक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन से जुड़ी सभी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई हैं।
साथ ही स्थानीय व्यापारियों, होटल व्यवसायियों एवं तीर्थ पुरोहितों से शीतकालीन यात्रा को सफल बनाने में सहयोग की अपील भी की गई है।


आध्यात्मिकता और संस्कृति का संगम

शीतकालीन पूजा स्थलों पर विशेष पूजा-अर्चना, महाआरती, धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से यात्रा को अधिक भव्य, आध्यात्मिक और आकर्षक स्वरूप दिया जा रहा है।


निष्कर्ष

उत्तराखंड की शीतकालीन यात्रा अब केवल आस्था तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह राज्य के धार्मिक पर्यटन को वर्षभर जीवंत रखने का सशक्त माध्यम बन रही है। बढ़ती श्रद्धालु संख्या और राष्ट्रीय पहचान यह संकेत दे रही है कि आने वाले वर्षों में शीतकालीन पूजा स्थल देवभूमि की आध्यात्मिक पहचान को और मजबूती प्रदान करेंगे।

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