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उत्तराखंड में सड़क सुरक्षा की पोल खुली, टूटे क्रैश बैरियर और गायब साइनबोर्ड मौत को दे रहे न्यौता, 544 खतरनाक प्वाइंट अब भी अनदेखे

स्थान: देहरादून, उत्तराखंड |  तारीख: 05 दिसम्बर 2025

सर्दी बढ़ते ही उत्तराखंड की सड़कों पर हादसों की रफ्तार भी बढ़ने लगी है। पहाड़ों में कोहरा, फिसलन और घुमावदार सड़कों के बीच सबसे बड़ा खतरा बन रहा है सड़क सुरक्षा व्यवस्थाओं का बुरा हाल
राज्य के कई मार्गों पर न तो बैरियर ठीक हैं और न ही चेतावनी बोर्ड मौजूद—इन खामियों की वजह से हर मोड़ घातक साबित हो रहा है।


टूटे क्रैश बैरियर—सीधा मौत की तरफ खुला रास्ता

देहरादून से लेकर टिहरी, चमोली और हरिद्वार तक कई स्थानों पर सड़क किनारे बने क्रैश बैरियर टूट चुके हैं।
कई जगहों पर गहरी खाइयों के किनारे किसी भी तरह का सुरक्षा प्रबंध नहीं है।
रात के समय गाड़ियां ब्लाइंड कर्व पर अचानक मोड़ लेती हैं और बिना बैरियर के फिसलकर खाई में गिरने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।


साइनबोर्ड गायब—ड्राइवर अंधेरे में चलते हुए खुद को खतरे में छोड़ देते हैं

अनेक जगहों पर:

  • रात में दृश्यता कम

  • सड़कें संकरी

  • खतरनाक मोड़

  • और चेतावनी संकेतों का न होना

हालात को और भी जोखिमभरा बना रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क सुरक्षा बोर्ड महीनों से गायब हैं, लेकिन विभाग शिकायतें सुनने को तैयार नहीं।


544 खतरनाक प्वाइंट्स—अब तक नहीं हुआ सुधार

हालिया सर्वे में देहरादून, टिहरी, चमोली और हरिद्वार जिलों में 544 ऐसे स्थान चिह्नित किए गए थे जहां:

  • टूटी रेलिंग और बैरियर

  • मिट चुकी रोड मार्किंग

  • गहरे गड्ढे

  • ब्लाइंड कर्व

  • डिज़ाइन में गंभीर खामियां

स्पष्ट रूप से सामने आई थीं।
लेकिन कई महीनों बाद भी सुधार की रफ्तार कछुआ चाल से आगे नहीं बढ़ रही।

लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता राजेश कुमार केवल इतना कहते हैं कि “सिफारिशों के आधार पर कार्य किए जा रहे हैं।”
हालांकि जमीन पर तस्वीर इससे बिल्कुल अलग है।


जनता के सामने उठते बड़े सवाल

  • 544 खतरनाक प्वाइंट में कितनों पर मरम्मत हुई?

  • हादसों के बाद किसकी जवाबदेही तय हुई?

  • सुधार कार्य की स्पष्ट टाइमलाइन क्या है?

  • विभागों को जारी नोटिसों का क्या असर हुआ?

  • लापरवाही पर जिम्मेदारों पर क्या कार्रवाई हुई?

  • आम जनता के लिए सुरक्षित शिकायत तंत्र क्यों नहीं?

यह सवाल अब नागरिकों में आक्रोश पैदा कर रहे हैं।


हाल में हुए दुर्घटनाएं—सिस्टम की ढिलाई का प्रमाण

  • टिहरी बस हादसा: 70 मीटर गहरी खाई में गिरने से 5 लोगों की मौत

  • हल्द्वानी: एक दिन में तीन सड़क हादसे, तीन मृत

  • चमोली: बद्रीनाथ हाईवे पर बाइक–कार टक्कर में दो युवकों की मौत

  • ऋषिकेश–चमोली मार्ग: कई वाहन खाई में गिरे, दर्जनों घायल

इनमें से ज्यादातर हादसों के पीछे सड़क सुरक्षा की कमी और लापरवाही रही।


सड़क सुरक्षा की सबसे बड़ी कमियां उजागर

  • बैरियरों की भारी कमी और टूटे हुए सुरक्षा गार्ड

  • सड़कों की खराब मरम्मत और रखरखाव

  • रात के समय पर्याप्त स्ट्रीट लाइट नहीं

  • संकरी सड़कें और खतरनाक मोड़

  • ओवरस्पीडिंग और नियमों की अनदेखी

  • सैकड़ों जगहों पर गायब साइनबोर्ड

ये सभी मिलकर पहाड़ी यात्रा को मौत का सफर बना रहे हैं।


डिजिट इन्फो—उत्तराखंड की सड़कों की भयावह तस्वीर

  • 69.5: प्रति 100 दुर्घटनाओं पर मौत—राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना

  • 21,625: पिछले दस वर्षों में सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोग

  • 2–3 गुना: पहाड़ी जिलों में मौतों का अनुपात मैदानी क्षेत्रों से ज्यादा

  • 40%: खतरनाक स्थलों पर साइनबोर्ड और बैरियर अनुपस्थित

आंकड़े दिखाते हैं कि सड़क सुरक्षा सुधार की जरूरत तत्काल और अनिवार्य है।


निष्कर्ष—सड़क सुरक्षा में सुधार अब इंतजार नहीं सह सकता

उत्तराखंड की सड़कों पर सुरक्षा इंतजामों की गंभीर कमी लोगों की जान जोखिम में डाल रही है।
सर्दी और कोहरे के इस मौसम में टूटी-फूटी सड़कें और गायब चेतावनी बोर्ड किसी भी समय बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं।
544 खतरनाक प्वाइंट को सुधारना सरकार और विभागों की तत्काल जिम्मेदारी है।

सड़क सुरक्षा के नाम पर कागज़ों में योजनाएं काफी हैं, पर असल जरूरत है—

  • तेज और ठोस कार्रवाई

  • विभागीय जवाबदेही

  • और जनता–केंद्रित सुरक्षा व्यवस्था

जब तक ये कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक हर मोड़, हर ढलान और हर कर्व यात्रियों के लिए मौत का खुला निमंत्रण बना रहेगा।

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