स्थान: देहरादून | तारीख: 10 जून 2025
देहरादून:
राजधानी देहरादून के प्रतिष्ठित समरवैली स्कूल की ओर से 11वीं कक्षा में 37 छात्रों को फेल किए जाने का मामला तूल पकड़ गया है। शिक्षा विभाग द्वारा कराई गई पुनः परीक्षा में इनमें से 30 छात्र सफल घोषित हुए हैं। इस नतीजे ने न सिर्फ स्कूल प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर भी गहरे मंथन की जरूरत बता दी है।
क्या है पूरा मामला?
डालनवाला स्थित समरवैली स्कूल ने 11वीं की वार्षिक परीक्षा के बाद 37 छात्रों को फेल घोषित कर दिया था। इससे नाराज अभिभावकों ने उत्तराखंड बाल आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए स्कूल प्रशासन पर बच्चों को जानबूझकर फेल करने का आरोप लगाया।
बाल अधिकार आयोग ने तत्काल संज्ञान लेते हुए शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि इन छात्रों की पुनः परीक्षा करवाई जाए, ताकि निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके।
26-29 मई के बीच हुई पुनः परीक्षा
शिक्षा विभाग ने 26 से 29 मई के बीच गोवर्धन विद्या मंदिर, धर्मपुर को केंद्र बनाकर छात्रों की दोबारा परीक्षा करवाई। आयोग के अध्यक्ष, सचिव और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की निगरानी में यह प्रक्रिया संपन्न हुई।
परीक्षा के नतीजे चौंकाने वाले रहे:
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30 छात्र पास
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1 छात्र फेल
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6 छात्र अनुपस्थित
इन परिणामों ने स्कूल के मूल मूल्यांकन पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
शिक्षा विभाग का सख्त रुख
जिला शिक्षा अधिकारी ने स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए कहा कि सभी उत्तीर्ण छात्रों को कक्षा 12 में तत्काल प्रवेश दिया जाए। यदि कोई छात्र किसी अन्य विद्यालय में जाना चाहे तो उसे ट्रांसफर सर्टिफिकेट (TC) जारी किया जाए।
मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद कुमार ढौंडियाल ने स्कूल को आगाह करते हुए कहा:
“एक ही कक्षा के लिए बार-बार परीक्षा कराना छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई पर प्रतिकूल असर डालता है। अगर आयोग और शिक्षा विभाग की पुनः परीक्षा को स्कूल नहीं मानता तो यह स्पष्ट रूप से आदेश की अवहेलना है।”
16 जून को फिर परीक्षा? शिक्षा विभाग नाराज़
अब स्कूल प्रबंधन ने 16 जून को एक और परीक्षा कराने की घोषणा की है। इसके पीछे स्कूल ने सीआईएससीई बोर्ड का हवाला दिया है, जिसका पत्र 9 जून को उन्हें प्राप्त हुआ। लेकिन शिक्षा विभाग इस दलील से संतुष्ट नहीं है।
ढौंडियाल ने कहा कि जब विभाग व आयोग की देखरेख में निष्पक्ष परीक्षा हो चुकी है, तो बोर्ड के बहाने छात्रों को फिर से परीक्षा में बैठने के लिए बाध्य करना नाजायज है। यदि स्कूल दोबारा परीक्षा कराता है तो कड़ी विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
शिक्षाविदों का मानना है कि छात्रों को बार-बार परीक्षा में झोंकना न केवल उनके आत्मविश्वास को तोड़ता है बल्कि यह मानसिक उत्पीड़न जैसा है। आयोग और विभाग के निर्देशों के बावजूद स्कूल का रवैया निंदनीय है।
निष्कर्ष
समरवैली स्कूल का यह मामला शिक्षा प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक बड़ा सवाल है। स्कूल की मनमानी और छात्रों की मानसिक स्थिति के बीच संतुलन बनाए रखना अब शिक्षा विभाग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई है।