शौर्य स्थल निर्माण अंतिम चरण में, कैबिनेट में जल्द आएगा प्रस्ताव
देहरादून, 26 जुलाई 2025 – उत्तराखंड सरकार ने सैनिकों और उनके परिवारों के कल्याण को लेकर एक के बाद एक बड़े फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार जल्द ही अग्निवीरों को सरकारी सेवाओं में 10% क्षैतिज आरक्षण देने का प्रस्ताव कैबिनेट में लाने जा रही है। इसके साथ ही बलिदानियों के स्वजनों को दी जाने वाली सहायता राशि को भी पांच गुना बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया है।
सरकार का अग्निवीरों के लिए विशेष प्लान: नौकरियों में आरक्षण का रास्ता साफ
‘अग्निपथ योजना’ के तहत चार साल की सेवा पूरी कर लौटने वाले अग्निवीरों के लिए उत्तराखंड सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है।
- पुलिस, परिवहन, वन और अन्य राज्य विभागों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जाएगा।
- इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के लिए जल्द पेश किया जाएगा।
यह फैसला उन अग्निवीरों के लिए राहत लेकर आएगा जो सेना से सेवा निवृत्ति के बाद राज्य में नौकरी की तलाश करेंगे।
भव्य सैन्य धाम (शौर्य स्थल) का निर्माण अंतिम चरण में
उत्तराखंड सरकार द्वारा अमर शहीदों की स्मृति में ‘सैन्य धाम’ का निर्माण तेजी से किया जा रहा है।
- इस स्थल को राज्य की 28 पवित्र नदियों के जल और बलिदानी सैनिकों के घरों से लाई गई मिट्टी से तैयार किया जा रहा है।
- शौर्य स्थल निर्माण कार्य अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है और इसे जल्द आमजन के लिए समर्पित किया जाएगा।
बलिदानी परिवारों के लिए अनुग्रह राशि में बड़ी बढ़ोतरी
राज्य सरकार ने शहीद सैनिकों के परिवारों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि में भारी बढ़ोतरी की है:
- पहले यह राशि ₹10 लाख थी, जिसे अब ₹50 लाख किया गया है।
- परमवीर चक्र विजेताओं को दी जाने वाली सम्मान राशि भी ₹50 लाख से बढ़ाकर ₹1.5 करोड़ कर दी गई है।
- इसके अतिरिक्त, वीरता पुरस्कारों से अलंकृत सैनिकों को मिलने वाली एकमुश्त धनराशि में भी संशोधन किया गया है।
मुख्यमंत्री धामी बोले – राज्य सैनिक सम्मान और सेवा में अग्रणी रहेगा
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा,
“उत्तराखंड वीरों की भूमि है और हमारी सरकार का कर्तव्य है कि सैनिकों और उनके परिवारों को पूरा सम्मान, सुरक्षा और अवसर प्रदान किया जाए। ये फैसले उनके त्याग को नमन करते हुए लिए गए हैं।”
उत्तराखंड देश के सैन्य बलों को सबसे अधिक जवान देने वाला राज्य है और सरकार की यह पहल न केवल वीरता का सम्मान है, बल्कि एक संवेदनशील और दूरदर्शी सामाजिक निर्णय भी है।