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“उल्टी बही तो खैर, सीधी चली तो तबाही – खीर गंगा ने रच दिया तबाही का नया नक्शा”

उत्तरकाशी | 6 अगस्त 2025

उत्तरकाशी की धराली घाटी में हालिया त्रासदी के बाद, अब इस घटना की वैज्ञानिक विवेचना भी सामने आने लगी है। दून विश्वविद्यालय के नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर डॉ. डी.डी. चुनियाल ने इस प्राकृतिक आपदा पर सैटेलाइट चित्रों और भौगोलिक विश्लेषणों के माध्यम से जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे इंसानी अतिक्रमण और पर्यावरणीय अनदेखी के गंभीर परिणामों को उजागर करते हैं।


त्रासदी की जड़: नदी के रास्ते में बसाई गई बस्ती

प्रो. चुनियाल के मुताबिक, खीर गंगा — जो कि भागीरथी की सहायक नदी है — वर्षों से प्राकृतिक फ्लड प्लेनों का निर्माण करती रही है। इन्हीं में से एक फ्लड प्लेन पर स्थानीय लोगों ने खेती शुरू की, और धीरे-धीरे वह क्षेत्र व्यवसायिक गतिविधियों और निर्माण का केंद्र बन गया।

नई बस्ती पर तबाही का साया

इसी फ्लड प्लेन क्षेत्र में नई धराली बस्ती बसाई गई, जिसमें दर्जनों होटल, दुकानों और घरों का निर्माण हुआ। लेकिन यह पूरा इलाका खीर गंगा के प्राकृतिक प्रवाह मार्ग में पड़ता था। नदी का रास्ता रोका गया, तो उसने उत्तर की ओर मुड़कर “उल्टी दिशा” में बहना शुरू किया।

क्यों बहने लगी उल्टी खीर गंगा?

प्रोफेसर चुनियाल का कहना है कि अतिक्रमण के चलते नदी को प्राकृतिक ढलान नहीं मिला, जिससे उसका बहाव उत्तर दिशा की ओर उल्टा हो गया। लेकिन प्रकृति को अपने संतुलन में लौटना ही होता है — और वही 5 अगस्त की दोपहर हुआ। नदी ने जबरन छोड़ा गया अपना मूल रास्ता दोबारा पकड़ लिया, और लाखों टन मलबा, बोल्डर और पानी लेकर वह नई धराली बस्ती पर कहर बनकर टूटी।


सैटेलाइट से देखी गई तबाही की तस्वीर

प्रो. चुनियाल ने उपग्रह चित्रों के माध्यम से यह भी दिखाया कि खीर गंगा के उद्गम स्थल यानी ग्लेशियर क्षेत्र में सैकड़ों छोटे-छोटे ताल बने हुए हैं। लगातार बारिश के कारण ये ताल एक के बाद एक भरते गए। जब पहला ताल टूटा तो पानी ने नीचे के ताल को भर दिया और फिर पूरी श्रृंखला टूटती चली गई। पानी का दबाव इतना जबरदस्त था कि वह बोल्डर और मलबा लेकर सीधे नीचे बस्ती की ओर बहा और तबाही ला दी।


पुराने धराली गांव की सलामती: पूर्वजों की दूरदर्शिता

इस आपदा में एक अहम तथ्य यह भी सामने आया है कि पुराना धराली गांव पूरी तरह सुरक्षित है। यह गांव भागीरथी के पूरब में एक ऊंची पहाड़ी पर बसा है और खीर गंगा के फ्लड जोन से बाहर है। खीर गंगा इस पहाड़ी की तलहटी से बहते हुए दक्षिण की ओर मुड़ती रही है। यही कारण है कि प्राकृतिक जलप्रवाह का सम्मान करते हुए बसे इस पुराने गांव को जलप्रलय छू भी नहीं पाया।

प्रो. चुनियाल का यह अध्ययन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि पूर्वजों की बस्तियां प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को ध्यान में रखकर बसाई जाती थीं, जबकि आज की बस्तियां मुनाफे और सुविधा की दौड़ में प्रकृति से टकरा बैठती हैं।


क्या सबक मिलते हैं इस त्रासदी से?

  • फ्लड जोन में निर्माण करने से बचना होगा।
  • नदियों के प्रवाह मार्ग को रोकने या मोड़ने की कोशिश आत्मघाती है।
  • पूर्वजों की भू-स्थापत्यिक समझ को आधुनिक विकास में भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • भविष्य में क्लाइमेट रेजिलिएंट प्लानिंग ही आपदा से बचाव का रास्ता है।

निष्कर्ष:

धराली की यह त्रासदी कोई “अचानक आई आपदा” नहीं थी, बल्कि यह मानव जनित लापरवाही का परिणाम है। खीर गंगा ने सिर्फ अपनी राह पकड़ी — और उस राह में आई बस्ती को बहा ले गई। प्रकृति की चेतावनी साफ है: उसकी सीमाओं को समझें, नहीं तो वह सीमाएं खुद तय कर लेगी।

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