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खतरे की घंटी! आर्कटिक में 25 करोड़ एकड़ बर्फ गायब, पृथ्वी के लिए गंभीर चेतावनी

देहरादून, 24 सितंबर 2025

आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ का तेजी से पिघलना अब पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक लगभग 25 करोड़ एकड़ बर्फ सिकुड़ चुकी है, जिससे ध्रुवीय भालू, सील और व्हेल जैसे जीवों का अस्तित्व गहरी चुनौती में पड़ गया है।


वन्यजीव संस्थान निदेशक की चेतावनी

भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के निदेशक डा. गोविंद सागर भारद्वाज ने बुधवार को यह चेतावनी दी।
वह केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा, देहरादून में आयोजित “वन एवं वन्यजीव में नागरिक विज्ञान की भूमिका” विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

डा. भारद्वाज ने कहा कि पृथ्वी के इतिहास में अब तक पांच बार सामूहिक प्रजाति-विनाश हो चुका है। आज वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और मानवजन्य गतिविधियां इस खतरे को और गंभीर बना रही हैं।


आधुनिक मनुष्य की भ्रांतियां बनीं संकट का कारण

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा. भारद्वाज ने आधुनिक समाज की तीन गलत धारणाओं को पर्यावरणीय संकट का मूल कारण बताया:

  1. मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है।

  2. प्रकृति के संसाधन केवल मनुष्य के लिए बने हैं।

  3. आने वाली पीढ़ियां हर हाल में जीवित रहेंगी।

उन्होंने कहा कि यदि इन भ्रांतियों को नहीं तोड़ा गया तो आने वाले वर्षों में जैव विविधता और मानव जीवन दोनों ही बड़े खतरे में होंगे।


बच्चों को जोड़ना होगा प्रकृति से

कार्यक्रम में अकादमी के प्रधानाचार्य विक्रम ने कहा कि आज की पीढ़ी मोबाइल और तकनीक में उलझकर प्रकृति से दूर होती जा रही है। उन्होंने इस पर जोर दिया कि बच्चों को बचपन से ही पेड़-पौधों, पक्षियों और प्राकृतिक गतिविधियों से जोड़ना जरूरी है।
यह कदम न केवल पर्यावरण संरक्षण को मजबूती देगा, बल्कि बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाने और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचाने में भी सहायक होगा।


प्रशिक्षण कार्यक्रम में व्यापक भागीदारी

पाठ्यक्रम निदेशक अंकित गुप्ता (वैज्ञानिक सी) ने तीन दिवसीय प्रशिक्षण की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि यह कार्यक्रम पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है।

इस प्रशिक्षण में आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों से लगभग 30 प्रतिभागी शामिल हुए। इनमें स्कूल व कॉलेज शिक्षक, प्रकृति क्लब समन्वयक, शोधकर्ता और स्वयंसेवी संगठन के प्रतिनिधि मौजूद हैं।


निष्कर्ष

आर्कटिक में तेजी से पिघलती बर्फ यह साफ संकेत देती है कि जलवायु परिवर्तन अब केवल भविष्य का संकट नहीं बल्कि वर्तमान की सच्चाई है। वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की मानें तो यदि समाज ने समय रहते चेतना नहीं दिखाई, तो आने वाली पीढ़ियों को न केवल जीव-जंतुओं का विलुप्त होना देखना पड़ेगा, बल्कि जीवन स्वयं संकट में पड़ सकता है।

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