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देहरादून एयरपोर्ट फूड काउंटर विवाद में नया मोड़, टेंडरधारी ने लगाए गंभीर आरोप, हाईकोर्ट से मिला स्टे, फिर भी प्रबंधन कार्रवाई से कर रहा इनकार

स्थान: डोईवाला (देहरादून)

जौलीग्रांट स्थित देहरादून एयरपोर्ट (Doiwala) पर फूड एंड बेवरेज काउंटर को लेकर विवाद अब कानूनी पटल तक पहुंच गया है। टेंडरधारी मनीष चक्रवर्ती, जो “मनीष टैक्सी सर्विस” के संचालक हैं, ने एयरपोर्ट प्रबंधन पर अनुचित व्यवहार, शर्तों में हेरफेर और भुगतान जब्ती जैसे संगीन आरोप लगाए हैं। मनीष ने बताया कि उन्हें हाईकोर्ट से स्टे मिलने के बावजूद एयरपोर्ट प्रबंधन उन्हें दोबारा कार्य शुरू करने नहीं दे रहा।


प्रेसवार्ता में उभरे आरोप:

भानियावाला में आयोजित प्रेसवार्ता में मनीष चक्रवर्ती ने खुलासा किया कि—

  • उन्हें टेंडर में अनुचित और ग़लत शर्तों के तहत फंसाया गया।
  • 7.5 करोड़ से अधिक का भुगतान जो उनके अनुसार देय था, जब्त कर लिया गया
  • उन्हें टेंडर में जितना स्पेस मिलना था, वह समय पर नहीं मिला, लेकिन किराया लगातार जोड़ा जाता रहा
  • वह ₹1 करोड़ प्रति माह किराया दे रहे थे, जबकि अब उसी कार्य को 27 लाख रुपये प्रति माह में किसी चंडीगढ़ निवासी को सौंप दिया गया है।
  • इससे स्थानीय लोगों की नौकरियों पर भी असर पड़ा है।

न्यायालय का स्टे, फिर भी टकराव बरकरार

मनीष चक्रवर्ती के अनुसार, जब उन्हें एयरपोर्ट प्रबंधन से न्याय नहीं मिला, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए:

  • एयरपोर्ट द्वारा की गई राशि जब्ती को गलत ठहराया,
  • और फूड काउंटर संचालन पर स्टे दे दिया।

फिर भी, उनका आरोप है कि एयरपोर्ट प्रशासन न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रहा है और उन्हें दोबारा काम शुरू करने से रोका जा रहा है।


एयरपोर्ट प्रबंधन का पक्ष:

इस पूरे मामले पर एयरपोर्ट निदेशक प्रभाकर मिश्रा का कहना है कि—

“टेंडरधारी की ओर से करोड़ों रुपये की राशि बकाया है, इसी कारण टेंडर को रद्द किया गया था। कोर्ट के आदेश का परीक्षण किया जा रहा है, और सभी कानूनी प्रक्रियाएं नियमों के अनुसार पूरी की जाएंगी।”


रोजगार पर संकट और स्थानीय असंतोष

काउंटर बंद होने से स्थानीय कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं और कई छोटे व्यापारी भी प्रभावित हुए हैं। यह मामला अब सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक पहलुओं से भी जुड़ गया है


निष्कर्ष:

यह विवाद एयरपोर्ट प्रशासन की पारदर्शिता, टेंडर प्रक्रिया की निष्पक्षता और न्यायिक आदेशों के पालन पर कई सवाल खड़े कर रहा है। यदि समय रहते समाधान नहीं निकला तो यह मामला राज्य में बढ़ते कारोबारी असंतोष का प्रतीक बन सकता है।

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