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देहरादून क्राइम: चर्चित मोती हत्याकांड में बड़ा फैसला – छह साल बाद दोनों आरोपी बरी, पुलिस की फर्जी कहानी से ढह गया पूरा केस

देहरादून, 17 अक्टूबर 2025


अदालत का फैसला: नदीम और अहसान दोषमुक्त घोषित
देहरादून के विकासनगर क्षेत्र के बहुचर्चित मोती हत्याकांड में अदालत ने बुधवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नंदन सिंह की अदालत ने इस मामले में आरोपी नदीम और अहसान को साक्ष्यों के अभाव में दोषमुक्त करार दिया।
दोनों आरोपी पिछले छह वर्ष आठ माह से जेल में बंद थे। अदालत ने पाया कि पुलिस की जांच में कई गंभीर खामियां रहीं, जिनकी वजह से मुकदमा टिक नहीं पाया।


क्या था मामला – 2019 में गायब हुआ था मोती सिंह
यह मामला 18 जनवरी 2019 का है। त्यूणी के झिटाड़ गांव निवासी तारा सिंह ने पुलिस को बताया था कि वे अपने बेटे मोती सिंह के साथ मकान निर्माण कार्य के सिलसिले में जीवनगढ़ (विकासनगर) आए थे।
16 जनवरी की शाम को मोती अपने साथी संजय चौहान के साथ बाल कटवाने बाजार गया था, लेकिन वह वापस नहीं लौटा

तारा सिंह ने बताया कि उन्होंने बाबर डेंटर से देखा था कि उनकी कार में दो युवक बैठे थे, जिन्होंने अपने नाम नदीम और अहसान बताए थे। ऐसा लग रहा था कि मोती उन्हें पहले से जानता था। कुछ समय बाद मोती गायब हो गया और 20 मार्च 2019 को उसका शव आसन बैराज के गेट नंबर एक पर फंसा मिला।


पुलिस की थ्योरी – ईंट से हत्या और शव शक्ति नहर में फेंकने का दावा
पुलिस ने जांच में दावा किया कि मोती की हत्या ईंट से सिर पर वार कर की गई।
आरोपियों पर आरोप था कि उन्होंने मोती के साथ नशा किया, झगड़ा हुआ और फिर नदीम ने ईंट से वार कर हत्या कर दी। बाद में शव को शक्ति नहर में फेंकने की कहानी पुलिस ने गढ़ी।
पुलिस ने घटना में प्रयुक्त ईंट और कार बरामद करने का दावा भी किया।

लेकिन अदालत में ये सभी बातें पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खारिज हो गईं।


पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पलटी कहानी
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि मृतक मोती के सिर पर कोई चोट नहीं थी।
रिपोर्ट के अनुसार,

  • गले पर 10 सेंटीमीटर लंबा और चार सेंटीमीटर चौड़ा गहरा चीरा था।

  • दाईं जांघ पर 10 सेंटीमीटर लंबा और पांच सेंटीमीटर चौड़ा कटाव मिला।

दोनों घाव धारदार हथियार से बने थे, जबकि पुलिस ने ईंट से हत्या का दावा किया था। यही नहीं, ईंट और कार पर मिले खून का डीएनए मिलान भी नहीं कराया गया था।


पुलिस जांच पर उठे सवाल – सबूत कमजोर, गवाहों की पहचान नहीं
अदालत ने पाया कि पुलिस ने घटना की जांच में लापरवाही की।

  • अहम गवाह संजय चौहान से टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) में आरोपियों की पहचान नहीं कराई गई।

  • हत्या का मकसद (motive) कभी साबित नहीं हो पाया।

  • ईंट और कार की बरामदगी के कोई स्वतंत्र गवाह नहीं थे।

  • पुलिस की कहानी में विरोधाभास स्पष्ट थे।

अपर जिला शासकीय अधिवक्ता नरेश बहुगुणा ने अभियोजन पक्ष से 15 गवाह पेश किए, जबकि बचाव पक्ष के वकील हिमांशु पुंडीर ने अदालत के समक्ष पुलिस जांच की खामियां उजागर कीं।


दो महीने बाद मिला शव, पुलिस की थ्योरी फेल
पुलिस को मोती का शव मिलने में पूरे दो महीने लग गए।
शक्ति नहर में शव की तलाश के लिए ड्रोन, सोनार और डीप डाइविंग तकनीक तक का इस्तेमाल हुआ, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
काफी समय बाद, शव आसन बैराज के गेट नंबर एक पर फंसा मिला — जिससे पुलिस की यह थ्योरी भी कमजोर पड़ी कि शव शक्ति नहर में फेंका गया था।


अदालत का निष्कर्ष – फर्जी कहानी से ढह गया पूरा मुकदमा
न्यायालय ने साफ कहा कि पुलिस की कहानी न केवल कमजोर थी, बल्कि साक्ष्यों के अभाव में अविश्वसनीय भी साबित हुई।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट, गवाहों की पहचान, डीएनए रिपोर्ट और हत्या के उद्देश्य की अनुपस्थिति ने पूरे मामले को संदिग्ध बना दिया।


निष्कर्ष: न्यायालय ने दी राहत, पर जांच पर उठे गंभीर प्रश्न
विकासनगर का यह चर्चित मामला अब एक बार फिर पुलिस की तथ्यहीन जांच प्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है।
अदालत के फैसले के बाद भले ही नदीम और अहसान को राहत मिली हो, लेकिन इस केस ने यह दिखा दिया कि कमजोर साक्ष्य और गढ़ी गई कहानी से न्याय नहीं, अन्याय ही होता है।
अब यह देखना होगा कि क्या इस प्रकरण में पुलिस जांच की पुनर्समीक्षा होगी या मामला यहीं ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

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