देहरादून
राजधानी में वर्षों से लटकी नियो मेट्रो परियोजना को एक और बड़ा झटका लगने जा रहा है। करीब 90 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद, अब मेट्रो स्टेशन के लिए आरक्षित जमीन पर पार्क बनाए जाने का प्रस्ताव सामने आया है। इससे न केवल परियोजना की भविष्य की संभावनाएं खतरे में पड़ गई हैं, बल्कि अब तक हुए खर्च और प्रयासों पर भी सवाल उठने लगे हैं।
मेट्रो का सपना या अधूरा प्रयास?
2017 से चली आ रही देहरादून नियो मेट्रो परियोजना की फाइलों में ही दौड़ जारी है। 2022 में केंद्र सरकार को डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) भेजी गई, लेकिन अब तक कोई स्वीकृति नहीं मिली।
इस बीच, आईएसबीटी के पास मेट्रो स्टेशन के लिए आरक्षित भूमि को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल, जो एमडीडीए एचआईजी कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं, ने इस भूमि पर पार्क निर्माण की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।
गुपचुप चल रही कवायद, मेट्रो कॉरपोरेशन को खबर तक नहीं!
चौंकाने वाली बात यह है कि पार्क बनाने की इस कवायद की सूचना खुद मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को नहीं दी गई है।
उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के एमडी बृजेश कुमार मिश्रा ने स्पष्ट किया कि उन्हें किसी पार्क प्रस्ताव की जानकारी नहीं है और उनके अनुसार, यह भूमि मेट्रो स्टेशन निर्माण के लिए निर्धारित है।
मेट्रो परियोजना की अब तक की यात्रा
- 2017-18: मेट्रो परियोजना का प्रारंभिक विचार।
- 08 जनवरी 2022: डीपीआर को राज्य कैबिनेट से मिली मंजूरी।
- 12 जनवरी 2022: केंद्र सरकार को भेजी गई डीपीआर।
- 2022-2023: केंद्र ने तकनीकी सवाल उठाए, इसके बाद प्रगति ठप।
- अब तक खर्च: 90 करोड़ रुपये।
- लागत अनुमान: पहले 1852 करोड़, अब बढ़कर 2303 करोड़ रुपये।
प्रस्तावित रूट और स्टेशन विवरण
रूट | लंबाई |
---|---|
आईएसबीटी से गांधी पार्क | 8.5 किमी |
एफआरआई से रायपुर | 13.9 किमी |
कुल स्टेशन | 25 |
कुल लंबाई | 22.42 किमी |
लागत में हुआ बड़ा इजाफा
लगातार देरी और निर्णयहीनता के चलते मेट्रो प्रोजेक्ट की लागत 450 करोड़ रुपये तक बढ़ चुकी है।
प्रारंभ में 1852 करोड़ रुपये अनुमानित लागत थी, जो अब 2303 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। यह भी एक बड़ा कारण है कि अधिकारी अब इस पर अंतिम निर्णय लेने में हिचकिचाहट महसूस कर रहे हैं।
सवाल उठ रहे हैं…
- क्या मेट्रो परियोजना वास्तव में धरातल पर उतर पाएगी?
- पहले ही अधर में लटके प्रोजेक्ट की जमीन भी छिन गई तो क्या होगा?
- क्या यह परियोजना राजनीतिक रस्साकशी और अफसरशाही के कारण दम तोड़ रही है?
निष्कर्ष: शहर की उम्मीदें अधर में
देहरादून जैसे तेजी से विकसित होते शहर में मेट्रो की आवश्यकता से कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन बिना ठोस योजना, समन्वय और इच्छाशक्ति के यह सपना अब एक राजनीतिक विवाद और प्रशासनिक उलझनों का शिकार होता दिख रहा है।
अब देखना यह होगा कि सरकार वास्तविक शहरी परिवहन व्यवस्था के पक्ष में निर्णय लेती है या फिर मेट्रो प्रोजेक्ट भी कई अन्य अधूरी योजनाओं की तरह फाइलों में ही दम तोड़ देता है।