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देहरादून सचिवालय में बड़ा फेरबदल: वर्षों से जमे अफसरों की अब होगी छुट्टी, मुख्य सचिव ने लागू की नई तबादला नीति

तारीख: 18 जुलाई 2025
स्थान: देहरादून

सचिवालय में सालों से एक ही कुर्सी पर जमे अफसरों के दिन अब लदने वाले हैं। उत्तराखंड के मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन ने सचिवालय प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से नई तबादला नीति लागू कर दी है। यह नीति 31 जुलाई 2025 से पहले प्रभाव में लाई जाएगी और सभी तबादले इसी समयसीमा में पूरे करने होंगे।


क्या है नई तबादला नीति?

  • सचिवालय सेवा संवर्ग के अंतर्गत आने वाले अधिकारी जैसे:
    • अनुभाग अधिकारी से लेकर संयुक्त सचिव तक
    • समीक्षा अधिकारी
    • सहायक समीक्षा अधिकारी
    • कंप्यूटर सहायक
      — सभी पर यह नई नीति लागू होगी।
  • तैनाती की समय-सीमा तय:
    • श्रेणी-क (संयुक्त सचिव से अनुभाग अधिकारी तक): एक ही विभाग में अधिकतम 3 वर्ष
    • श्रेणी-ख (समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी): एक अनुभाग में अधिकतम 5 वर्ष
    • श्रेणी-ग (कंप्यूटर सहायक): अधिकतम 7 वर्ष

क्यों उठाया गया यह कदम?

2007 में सचिवालय तबादला नीति लागू की गई थी, लेकिन प्रभावी क्रियान्वयन न होने के कारण कई अधिकारी 10 से 15 साल तक एक ही विभाग या अनुभाग में जमे रहे। इससे:

  • पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे
  • विभागीय कार्यप्रणाली में निष्पक्षता की कमी रही
  • नए अधिकारियों को अनुभव के अवसर नहीं मिले

कैसे होगा तबादलों का चयन?

मुख्य सचिव के अनुमोदन से एक तबादला समिति का गठन होगा। इसमें शामिल होंगे:

  • अपर मुख्य सचिव / प्रमुख सचिव / सचिव (एक अध्यक्ष के रूप में)
  • सचिवालय प्रशासन के अपर सचिव
  • मुख्य सचिव द्वारा नामित अधिकारी (अपर सचिव स्तर तक)

यह समिति तबादलों के लिए वार्षिक समीक्षा करेगी और तय मानकों के अनुसार स्थानांतरण सुनिश्चित करेगी।


कब से लागू होगा बदलाव?

  • नीति तत्काल प्रभाव से लागू
  • 31 जुलाई 2025 तक सभी तबादले किए जाएंगे

क्यों है यह बदलाव अहम?

  • सचिवालय में फेयर पोस्टिंग सिस्टम की शुरुआत
  • वर्षों से कुर्सी पकड़कर बैठे अफसरों पर रोक
  • दक्षता, जवाबदेही और निष्पक्षता को बढ़ावा
  • युवा और योग्य अधिकारियों को अवसर

निष्कर्ष:

उत्तराखंड सचिवालय में यह नई नीति “परिवर्तन और पारदर्शिता” की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। सरकार का लक्ष्य अब यह सुनिश्चित करना है कि कुर्सी नहीं, काम बोले। वर्षों से जमे अफसरों के हटने से सिस्टम में न केवल नई ऊर्जा आएगी, बल्कि लंबे समय से रुकी हुई निष्पक्ष कार्यप्रणाली भी अब नए सिरे से जमीनी स्तर पर दिखेगी।

“अब सचिवालय में हर कुर्सी पर तय समय का होगा हिसाब…”

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