देहरादून, 22 अगस्त 2025।
उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर बयानबाज़ी ने सियासी माहौल गर्मा दिया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया कि पार्टी खनन कारोबारियों से जुटाए गए पैसों से राजनीति चला रही है।
“भाजपा ने बनाई 30 करोड़ की एफडी”
मीडिया से बातचीत में हरक सिंह रावत ने कहा कि भाजपा ने खनन कारोबारियों से मोटी रकम लेकर 30 करोड़ रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) बनाई। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जब वह प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, तब उन्होंने खुद रामनगर क्षेत्र के खनन कारोबारियों से 10-10 लाख रुपये के चेक लेकर भाजपा के लिए एक करोड़ रुपये से अधिक राशि जुटाई थी।
“मैं भी दोषी हूं, ईडी जांच करे”
हरक सिंह ने कहा कि उस समय उन्होंने पार्टी हित में यह काम किया था, लेकिन अब वह इसे गलत मानते हैं। उन्होंने मांग की कि इस पूरे मामले की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
“अगर ईडी जांच करे तो भाजपा के कई बड़े नेता जेल में होंगे। मेरी भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकरण में मैं भी शामिल रहा हूं।”
भाजपा का पलटवार – “राजनीतिक साख बचाने की कोशिश”
भाजपा ने हरक सिंह के आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य महेंद्र भट्ट ने कहा कि हरक सिंह कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में बने रहने के लिए झूठे आरोपों का सहारा ले रहे हैं।
“अगर आरोपों में सच्चाई होती तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाते। मीडिया में सुर्खियां बटोरना उनकी आदत है।”
“भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेस” – भाजपा
भट्ट ने कांग्रेस पर भी निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा हर साल अपने खातों का आडिट कर संबंधित एजेंसियों को जानकारी देती है, जबकि कांग्रेस की सदस्यता शुल्क तक में घोटाले सामने आते रहते हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा—
“भाजपा में भ्रष्टाचार और अपराधियों को संरक्षण नहीं मिलता, लेकिन कांग्रेस का इतिहास घोटालों से भरा है।”
“आरोप कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा”
भाजपा का कहना है कि हरक सिंह के आरोप कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान और नेतृत्व की लड़ाई का नतीजा हैं। महेंद्र भट्ट ने साफ कहा कि जनता अब ऐसे आरोप-प्रत्यारोप को गंभीरता से नहीं लेती।
- हरक सिंह रावत के आरोप और भाजपा की प्रतिक्रिया ने उत्तराखंड की राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया है। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि विपक्ष इसे किस तरह चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करता है और क्या ईडी इस पर कोई कार्रवाई करती है।