तारीख: 14 अगस्त 2025
स्थान: धराली, उत्तरकाशी (उत्तराखंड)
उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त 2025 को आई आपदा ने कई परिवारों के सपनों को मलबे में दफना दिया। 45 वर्षीय होटल व्यवसायी संजय सिंह पंवार के लिए यह दिन उनकी जिंदगी का सबसे भयावह और दर्दनाक अनुभव बन गया। खीरगंगा का वह रौद्र रूप उनकी आंखों के सामने उनके 14 कमरों का होटल, रेस्टोरेंट और सालों की मेहनत को बहा ले गया।

तीन आपदाएं झेल चुके, चौथी बनी सबसे भयावह
संजय पंवार पहले भी 1991 का भूकंप, 2013 की बाढ़ और 2018 की आपदा का सामना कर चुके हैं, लेकिन इस बार तबाही का मंजर अलग ही था।
“हम सीमांत क्षेत्र में रहते हैं, खतरे का अंदाजा रहता है, लेकिन कभी नहीं सोचा था कि धराली बाजार की पहचान को अपनी आंखों के सामने मिटते देखूंगा,” संजय ने रोते हुए कहा।

12 साल की उम्र में शुरू हुई थी होटल की कहानी
संजय बताते हैं कि जब वे 12 साल के थे, उनके पिता अमर चंद पंवार ने खेती के साथ धराली बाजार में होटल और रेस्टोरेंट बनाया था। छोटे भाई जयदेव पंवार भी होटल के संचालन में मदद करते थे। पीछे खेतों में 70 वर्षीय मां गोदांबरी देवी राजमा और सब्जियां उगाती थीं, जिससे हर साल लगभग डेढ़ लाख रुपये की आमदनी होती थी। इन्हीं पैसों से छह भाई-बहनों की पढ़ाई और परवरिश हुई।
5 अगस्त का डरावना दोपहर
दोपहर करीब 1:25 बजे संजय गांव की ओर जा रहे थे, तभी मुखवा गांव की तरफ से अचानक चेतावनी स्वरूप सीटियां बजने लगीं। उन्होंने सोचा कि शायद बारिश से तेलगाड का जलस्तर बढ़ गया है, लेकिन कुछ ही मिनटों में खीरगंगा के ऊपरी हिस्से से काला पानी, धुएं जैसा मलबा और गर्जना के साथ आती लहरें नजर आईं।
उस वक्त होटल में छोटा भाई जयदेव और छह कर्मचारी मौजूद थे। सभी ने जान बचाने के लिए अलग-अलग दिशाओं में चट्टानों की ओर दौड़ लगाई। रास्ते में संजय ने एक तीन मंजिला भवन, धर्मशाला और आंगनबाड़ी केंद्र को मिट्टी में समाते देखा।
मौत का नाच और रात भर की दहशत
करीब दो घंटे बाद आईटीबीपी के जवान पहुंचे और संजय सहित लगभग 30-40 लोगों को सुरक्षित कोंपाग ले गए। गांव के लोग पूरी रात आग जलाकर बैठे रहे और सोमेश्वर देवता से सुरक्षा की प्रार्थना करते रहे।

अगली सुबह का दर्दनाक मंजर
सुबह जब संजय होटल लौटे तो वहां सिर्फ मिट्टी का ढेर था—ना कमरे, ना रेस्टोरेंट, ना गाड़ी, ना सेब की ग्रेडिंग मशीन और ना ही कभी के सपनों की कोई निशानी। खेत भी मलबे में दब गए। स्कूल के प्रमाणपत्र और जरूरी दस्तावेज सब तबाह हो गए।
“अब बच्चों की पढ़ाई और आने वाले खर्च कहां से पूरे होंगे, समझ नहीं आ रहा। चार महीने बाद छोटी बहन की शादी भी है,” संजय की आवाज में बेबसी साफ झलक रही थी।
धराली की यह त्रासदी सिर्फ प्राकृतिक आपदा की नहीं, बल्कि उन टूटे सपनों और उजड़े जीवन की भी कहानी है, जिनकी भरपाई शायद कभी नहीं हो सकेगी।