देहरादून: पंचायत प्रशासकों का कार्यकाल खत्म, संवैधानिक संकट गहराया — सरकार चुनाव को तैयार, अध्यादेश राजभवन में अटका
देहरादून | 30 मई 2025
उत्तराखंड में पंचायत प्रणाली एक संवैधानिक मोड़ पर खड़ी है। राज्य की 7478 ग्राम पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, जिससे अब पंचायतों का संचालन संकट में पड़ गया है। क्षेत्र और जिला पंचायतों में भी प्रशासकों का कार्यकाल क्रमशः 30 मई और 2 जून को समाप्त हो रहा है।
संवैधानिक संकट: पंचायतें हो गईं प्रशासकविहीन
ग्राम पंचायतों के कार्यकाल की समाप्ति के बाद सरकार ने प्रशासक नियुक्त कर पंचायतों का कार्य चलाया था। लेकिन पंचायती राज अधिनियम के मुताबिक, यह कार्यकाल अधिकतम छह माह के लिए ही हो सकता है। बुधवार को यह अवधि पूरी हो गई, जिसके साथ ही ग्राम पंचायतों की प्रशासनिक बागडोर शून्य में लटक गई है।
एक दिन भी पंचायतें प्रशासकविहीन नहीं रह सकतीं। ऐसे में अब यह मामला संविधानिक शून्यता की स्थिति पैदा कर रहा है, खासकर तब जब पंचायत चुनाव अभी भी टलते दिख रहे हैं।
मुख्यमंत्री का आश्वासन: “चुनाव को तैयार है सरकार”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को मीडिया से बातचीत में स्पष्ट किया कि सरकार पंचायत चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहा,
“राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की तिथि तय करेगा। सरकार आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार पंचायत चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है।”
अध्यादेश बना संकट टालने का रास्ता, लेकिन अब भी इंतज़ार
सरकार ने पंचायतों में प्रशासकों के कार्यकाल को एक वर्ष तक बढ़ाने के लिए पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर अध्यादेश का मसौदा तैयार किया है, जिसे 28 मई को राजभवन को भेजा गया। लेकिन समाचार लिखे जाने तक राजभवन से अध्यादेश को मंजूरी नहीं मिली थी।
राज्यपाल सचिव रविनाथ रामन ने बताया,
“अध्यादेश प्राप्त हो चुका है और राजभवन द्वारा तय प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई की जा रही है।”
जिला पंचायतें भी संकट के मुहाने पर
ग्राम पंचायतों के बाद अब क्षेत्र और जिला पंचायतों का भी कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है:
- 30 मई: क्षेत्र पंचायत प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त
- 2 जून: जिला पंचायत प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त
यदि समय रहते अध्यादेश पारित नहीं होता, तो तीनों स्तरों की पंचायती व्यवस्थाएं ठप हो सकती हैं, जिससे राज्य में ग्रामीण विकास योजनाएं और प्रशासनिक निर्णय लंबित हो सकते हैं।
क्या आगे चुनाव होंगे या प्रशासकों का कार्यकाल बढ़ेगा? यह सवाल अब राजभवन के फैसले और राज्य निर्वाचन आयोग की घोषणा पर निर्भर करता है। ग्रामीण जनता की नजरें अब इन्हीं दो संस्थाओं पर टिकी हैं।
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