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पंचायत चुनाव 2025: जब राजनीति का पहला पाठ गांव की चौपाल से शुरू हुआ — उत्तराखंड में युवाओं का पंचायती संग्राम

उत्तराखंड | पंचायत चुनाव अब सिर्फ सत्ता की सीढ़ी नहीं, राजनीतिक प्रशिक्षण की पहली पाठशाला बन गए हैं — खासकर युवाओं के लिए। इस बार का त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव एक अनोखा बदलाव लेकर आया है: जहां राजनीति की बागडोर अब बुजुर्गों के हाथ से निकल कर युवाओं की सोच और ऊर्जा से संचालित हो रही है।


गांव लौटे युवा: नई सोच, नया नेतृत्व

इस चुनाव में युवा प्रत्याशी सिर्फ चुनाव लड़ने नहीं, बल्कि गांवों के कायाकल्प का सपना लेकर मैदान में उतरे हैं। इन युवाओं में छात्र राजनीति के पके हुए खिलाड़ी भी हैं, जो अब अपने गांव की दिशा बदलने को तैयार हैं।


युवाओं की लिस्ट जो कर रहे हैं बदलाव का दावा:

नामचुनाव क्षेत्रपिछला अनुभव
सिद्धार्थ राणाक्षेत्र पंचायत रौंदेलीडीएवी कॉलेज, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष
प्रेमचंद नौटियालक्षेत्र पंचायत मशकपूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष
श्याम सिंह चौहानजिला पंचायत रायगीएनएसयूआई प्रत्याशी, डीएवी कॉलेज
प्रमेश रावतक्षेत्र पंचायत 10 प्यूनलपूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष
अंकिता पालग्राम सभा खोलिया, अस्कोटवरिष्ठ छात्र नेता
नित्यानंद कोठियालबुढ़वांछात्र नेतृत्व से पंचायत में कदम

मकसद: नेता नहीं, विकासकर्ता बनना है

इन युवाओं का कहना है कि उनका लक्ष्य केवल कुर्सी पाना नहीं, अपने गांव को स्मार्ट बनाना है। मुद्दों की उनकी प्राथमिकताएं बिल्कुल साफ हैं:

  • स्वास्थ्य: गांवों में अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाएं
  • सुविधाएं: बारातघर, शमशान घाट, बुजुर्गों के लिए पेंशन
  • युवाओं के लिए: खेल मैदान, पार्क और उच्च शिक्षा संस्थान
  • प्रशासन: सरकारी योजनाओं को हर घर तक पहुंचाना

बुजुर्गों के प्रति सम्मान, लेकिन नेतृत्व अब युवाओं के हाथ

युवाओं का स्पष्ट संदेश है —

बुजुर्गों को अब चुनाव लड़ने की ज़रूरत नहीं। हम उनका प्रतिनिधित्व करेंगे, उनकी सेवा करेंगे और उनके आशीर्वाद से गांव की तस्वीर बदलेंगे।


राजनीतिक विश्लेषण: युवा नेतृत्व के संकेत

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उत्तराखंड का पंचायत चुनाव इस बार सिर्फ स्थानीय नेतृत्व का चुनाव नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना में बदलाव का संकेत भी है।
शहरी छात्र राजनीति से लेकर ग्रामीण पंचायत तक की यह यात्रा अब सिर्फ करियर का विकल्प नहीं, सेवा और समाधान की पहल बन रही है।


निष्कर्ष:
उत्तराखंड की पंचायतों में इस बार बदलाव की बयार है — और उसका चेहरा हैं ये युवा। अगर जनता ने इन्हें मौका दिया, तो यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि गांवों के भविष्य का मोड़ साबित हो सकता है।

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