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प्री-एसआईआर में उलझी वोटर तलाश, मैदानी जिलों में 2003 की मतदाता सूची बनी चुनौती

उत्तराखंड में चुनावी तैयारी के बीच बीएलओ पर बढ़ा दबाव

दिनांक: 14 दिसंबर 2025
स्थान: देहरादून, उत्तराखंड

उत्तराखंड में चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से पहले चल रही प्री-एसआईआर तैयारियों ने बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। खासतौर पर राज्य के मैदानी जिलों में वर्ष 2003 की मतदाता सूची के आधार पर मतदाताओं की मैपिंग करना किसी चुनौती से कम नहीं साबित हो रहा है।


पर्वतीय क्षेत्रों में आसान, मैदानी जिलों में उलझी मैपिंग

मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय की ओर से प्रदेशभर के 11,733 मतदान केंद्रों पर बीएलओ की तैनाती की गई है। इन सभी के माध्यम से वर्ष 2003 की मतदाता सूची के आधार पर वर्तमान मतदाताओं की मैपिंग कराई जा रही है। जहां पर्वतीय जिलों में यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत सुचारू रूप से चल रही है, वहीं देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों में बीएलओ को मतदाता तलाशने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।


मतदाता सूची में नाम, पते पर कोई नहीं

स्थिति यह है कि मैदानी जिलों में वर्ष 2003 की सूची में दर्ज कई मतदाता अब वहां निवास नहीं करते। बीएलओ को दिए गए पते पर पहुंचने पर संबंधित व्यक्ति का कोई अता-पता नहीं मिल रहा है। ऐसे में मैपिंग की प्रक्रिया बाधित हो रही है और अधिकारी असमंजस की स्थिति में हैं।


रोजगार के कारण बढ़ा पलायन बना बड़ी वजह

अधिकारियों के अनुसार, मैदानी जिलों में रोजगार के अवसरों के चलते देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आकर यहां बसते हैं। उद्योगों, निर्माण कार्यों और अन्य क्षेत्रों में काम करने के दौरान उन्होंने यहां मतदाता पंजीकरण कराया होगा, लेकिन समय के साथ वे लोग अन्य स्थानों पर चले गए। इसी कारण मतदाता सूची में नाम तो मौजूद हैं, लेकिन वास्तविक मतदाता अब उस क्षेत्र में नहीं मिल रहे।


बड़े स्तर पर वोट कटने से बचने की कवायद

निर्वाचन अधिकारी कार्यालय इस पूरी प्रक्रिया पर करीबी नजर बनाए हुए है। उद्देश्य यह है कि उत्तर प्रदेश की तरह एक साथ बड़ी संख्या में मतदाता नाम कटने जैसी स्थिति उत्तराखंड में न बने। इसलिए प्री-एसआईआर के स्तर पर ही सावधानी के साथ मैपिंग कराई जा रही है।


प्रदेश में 55 प्रतिशत मैपिंग पूरी

प्रदेशभर में वर्ष 2003 की मतदाता सूची से मैपिंग का कार्य अब तक करीब 55 प्रतिशत पूरा हो चुका है। पर्वतीय जिलों में यह आंकड़ा 70 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है, जबकि मैदानी जिलों में प्रगति अपेक्षाकृत धीमी है। माना जा रहा है कि अगले वर्ष की शुरुआत में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।


निष्कर्ष

प्री-एसआईआर के तहत की जा रही मैपिंग प्रक्रिया ने यह साफ कर दिया है कि मैदानी जिलों में मतदाता सत्यापन एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती है। समय रहते यदि इन समस्याओं का समाधान कर लिया गया, तो एसआईआर के दौरान अव्यवस्था से बचा जा सकेगा और मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी व सटीक बनाया जा सकेगा।

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