दिनांक: 5 नवम्बर 2025 | स्थान: देहरादून
देहरादून में चिकित्सा जगत की ऐतिहासिक उपलब्धि
देहरादून के राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चिकित्सा जगत में एक ऐतिहासिक सफलता हासिल की गई है। सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अभय कुमार और उनकी टीम ने बर्जर बीमारी (Buerger’s Disease) के इलाज के लिए देश में पहली बार एक अनोखी सर्जरी कर दिखाई। इस प्रक्रिया में मरीज की आंतों की झिल्ली को लेप्रोस्कोपी तकनीक से अलग कर पैरों की टनल (सुरंग) में लगाया गया है — बिना पेट काटे।
नई तकनीक: ‘लेप्रोस्कोपिक ओमेंटल फ्री ग्राफ्टिंग’
इस नई तकनीक को ‘लेप्रोस्कोपिक ओमेंटल फ्री ग्राफ्टिंग’ नाम दिया गया है। पहले इस बीमारी के इलाज के लिए बड़े चीरे के साथ आंत से झिल्ली निकालकर पैरों में लगाई जाती थी। लेकिन अब यह काम लेप्रोस्कोपी के जरिए छोटे चीरे से किया गया, जिससे मरीज को न केवल कम दर्द हुआ बल्कि रिकवरी भी तेज हुई।
डॉ. अभय कुमार ने बताया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह देश में पहली बार की गई है और इसे जल्द ही वैज्ञानिक शोध का हिस्सा बनाया जाएगा। ऑपरेशन के बाद मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है।
डॉ. अभय की टीम ने रचा नया इतिहास
इस सर्जरी को सफल बनाने में डॉ. दिव्यांशु, डॉ. गुलशेर, डॉ. मोनिका, डॉ. वैभव, डॉ. मयंक और डॉ. अनूठी जैसे चिकित्सक शामिल रहे। पूरी टीम ने मिलकर चार से पांच दिन में यह जटिल प्रक्रिया पूरी की।
क्या है बर्जर बीमारी, और क्यों बढ़ रही है चिंता
डॉ. अभय के अनुसार, बर्जर बीमारी मुख्यतः बीड़ी पीने वाले पुरुषों में पाई जाती है, विशेष रूप से 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में।
यह बीमारी पैरों की रक्त धमनियों में सूजन पैदा करती है, जिससे रक्त संचार रुक जाता है।
इस बीमारी के तीन स्टेज होते हैं —
- क्लॉडिकेशन: चलने के दौरान असहनीय दर्द।
- रेस्ट पेन: बैठे-बैठे भी दर्द बना रहता है।
- गैंगरीन या अल्सर: अंत में पैर की त्वचा सड़ने लगती है, जिससे अंग काटने की नौबत आ जाती है।
अब तक इसका कोई निश्चित क्लीनिकल इलाज नहीं था, लेकिन दून अस्पताल की इस नई प्रक्रिया से इलाज की उम्मीदें बढ़ी हैं।
कैसे काम करती है यह नई प्रक्रिया
सर्जरी में आंत की झिल्ली (omentum) को लेप्रोस्कोपी से काटकर अलग किया गया और त्वचा के नीचे टनल बनाकर पैरों में लगाया गया।
यह झिल्ली नई रक्त वाहिकाएं विकसित करती है, जिससे प्रभावित हिस्से में दोबारा रक्त संचार शुरू हो जाता है।
पर्वतीय इलाकों में ज्यादा खतरा
दून अस्पताल के अनुसार, सर्जरी विभाग की ओपीडी में हर महीने लगभग 20 मरीज बर्जर बीमारी से ग्रसित आते हैं, जिनमें से करीब 15 मरीज पर्वतीय क्षेत्रों से होते हैं।
बीड़ी में मौजूद निकोटीन लंबे समय तक शरीर में जाकर धमनियों को नुकसान पहुंचाता है। यही वजह है कि पहाड़ी इलाकों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है।
निष्कर्ष: चिकित्सा क्षेत्र में उत्तराखंड की बड़ी छलांग
देहरादून में की गई यह अनोखी सर्जरी न सिर्फ उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश के चिकित्सा इतिहास में मील का पत्थर साबित हो रही है।
यह प्रक्रिया भविष्य में बर्जर बीमारी के मरीजों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है, जो अब तक इस रोग के कारण अपने अंग खोने को मजबूर थे।


