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भारत का प्रथम गांव: 12 साल बाद फिर गूंजे वैदिक मंत्र, दक्षिण से जुटे श्रद्धालु, जानें क्या है पुष्कर कुंभ?

धर्म, परंपरा और प्रकृति का अद्वितीय संगम इन दिनों भारत के प्रथम गांव माणा में देखने को मिल रहा है। पुष्कर कुंभ। यह हर साल किसी न किसी एक प्रमुख भारतीय नदी के किनारे आयोजित होता है। जब बृहस्पति किसी विशेष राशि में प्रवेश करते हैं। बृहस्पति ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश कर चुके हैं, जिसके चलते सरस्वती नदी के तट पर पुष्कर कुंभ का आयोजन किया गया है।

बदरीनाथ धाम से महज़ तीन किलोमीटर आगे स्थित भारत के पहले गांव माणा में इन दिनों एक दिव्य और दुर्लभ आध्यात्मिक आयोजन हो रहा है- पुष्कर कुंभ। अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर केशव प्रयाग में 12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद फिर से कुंभ की शुरुआत हुई है। इस आयोजन का खास महत्व है।

यह दक्षिण भारत की वैष्णव परंपरा से जुड़ा है, जिसमें विशेष रूप से दक्षिण भारत के श्रद्धालु भाग लेते हैं और इस बार भी वह बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं। धर्माधिकारियों का मानना है कि पुष्कर कुंभ जैसे आयोजनों के माध्यम से दक्षिण और उत्तर भारत की वैदिक परंपराएं एक-दूसरे में समाहित होती हैं, जिससे भारतीय सांस्कृतिक एकता को बल मिलता है।

12 नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता

बृहस्पतिवार को 10000 से अधिक श्रद्धालुओं ने अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम स्थल पर आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने अपने पितरों का पिंडदान कर उनके मोक्ष की कामना की। सुबह पांच बजे से ही श्रद्धालु केशव प्रयाग में स्नान के लिए जुटने लगे थे। श्रद्धालुओं ने स्नान करने के बाद सरस्वती मंदिर के दर्शन भी किए।

पूरे दिनभर भीम पुल से केशव प्रयाग तक जाने वाला पैदल रास्ता श्रद्धालुओं से भरा रहा। उड़ीसा से पुष्कर कुंभ में स्नान के लिए पहुंचे कामेश्वर राव का कहना है कि वे पहली बार पुष्कर कुंभ में शामिल हुए। 12 साल बाद यह संयोग बना है। केशव प्रयाग में स्नान करने के बाद पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान किया। उन्होंने बताया कि देशभर की 12 नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता है।

दक्षिण भारत के आचार्यगणों ने कराया पिंडदान

श्रद्धालुओं के साथ दक्षिण भारत के आचार्यगण भी पहुंचे हुए थे। जिन्होंने श्रद्धालुओं की ओर से पूजा-अर्चना संपन्न की। यहां करीब 25 ब्राह्मण पहुंचे हुए हैं। जो श्रद्धालुओं के पितरों के तर्पण के साथ ही पिंडदान करा रहे हैं। केशव प्रयाग में स्नान के लिए श्रद्धालुओं में उत्साह देखने को मिला। अधिकांश श्रद्धालु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे हुए हैं।

बदरीनाथ धाम से महज़ तीन किलोमीटर आगे स्थित भारत के पहले गांव माणा में इन दिनों एक दिव्य और दुर्लभ आध्यात्मिक आयोजन हो रहा है- पुष्कर कुंभ। अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर केशव प्रयाग में 12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद फिर से कुंभ की शुरुआत हुई है। इस आयोजन का खास महत्व है।

यह दक्षिण भारत की वैष्णव परंपरा से जुड़ा है, जिसमें विशेष रूप से दक्षिण भारत के श्रद्धालु भाग लेते हैं और इस बार भी वह बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं। धर्माधिकारियों का मानना है कि पुष्कर कुंभ जैसे आयोजनों के माध्यम से दक्षिण और उत्तर भारत की वैदिक परंपराएं एक-दूसरे में समाहित होती हैं, जिससे भारतीय सांस्कृतिक एकता को बल मिलता है।

12 नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता

बृहस्पतिवार को 10000 से अधिक श्रद्धालुओं ने अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम स्थल पर आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने अपने पितरों का पिंडदान कर उनके मोक्ष की कामना की। सुबह पांच बजे से ही श्रद्धालु केशव प्रयाग में स्नान के लिए जुटने लगे थे। श्रद्धालुओं ने स्नान करने के बाद सरस्वती मंदिर के दर्शन भी किए।

पूरे दिनभर भीम पुल से केशव प्रयाग तक जाने वाला पैदल रास्ता श्रद्धालुओं से भरा रहा। उड़ीसा से पुष्कर कुंभ में स्नान के लिए पहुंचे कामेश्वर राव का कहना है कि वे पहली बार पुष्कर कुंभ में शामिल हुए। 12 साल बाद यह संयोग बना है। केशव प्रयाग में स्नान करने के बाद पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान किया। उन्होंने बताया कि देशभर की 12 नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता है।

दक्षिण भारत के आचार्यगणों ने कराया पिंडदान

श्रद्धालुओं के साथ दक्षिण भारत के आचार्यगण भी पहुंचे हुए थे। जिन्होंने श्रद्धालुओं की ओर से पूजा-अर्चना संपन्न की। यहां करीब 25 ब्राह्मण पहुंचे हुए हैं। जो श्रद्धालुओं के पितरों के तर्पण के साथ ही पिंडदान करा रहे हैं। केशव प्रयाग में स्नान के लिए श्रद्धालुओं में उत्साह देखने को मिला। अधिकांश श्रद्धालु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे हुए हैं।

Pushkar Kumbh badrinath Mana village More than 10000 devotees took a holy dip in Pushkar Kumbh Watch Photos

सरस्वती नदी में स्नान और पिंडदान से मिलती है पितरों को मुक्ति
पुष्कर कुंभ के दौरान श्रद्धालु सरस्वती नदी में स्नान करने के बाद अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र सरस्वती तट पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। खास बात यह है कि इस वर्ष बृहस्पति ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश कर चुके हैं, जिसके चलते सरस्वती नदी के तट पर पुष्कर कुंभ का आयोजन किया गया है।
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Pushkar Kumbh badrinath Mana village More than 10000 devotees took a holy dip in Pushkar Kumbh Watch Photos

12 नदियों में होता है पुष्कर कुंभ

पुष्कर कुंभ हर साल किसी न किसी एक प्रमुख भारतीय नदी के किनारे आयोजित होता है। जब बृहस्पति किसी विशेष राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस राशि से जुड़ी नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होता है।

Pushkar Kumbh badrinath Mana village More than 10000 devotees took a holy dip in Pushkar Kumbh Watch Photos

 

पुष्कर कुंभ और राशियों का संबंध इस प्रकार है

गंगा – मेष

नर्मदा – वृषभ

सरस्वती – मिथुन (वर्तमान आयोजन)

यमुना – कर्क

गोदावरी – सिंह

कृष्णा – कन्या

कोवरी – तुला

भीमा – वृश्चिक

ताप्ती – धनु

तुंगभद्रा – मकर

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माणा गांव में पुनर्जीवित हो रही प्राचीन परंपरा

इस बार माणा गांव में पुष्कर कुंभ का शुभारंभ बुधवार को विधिवत पूजा-अर्चना के साथ हुआ। माणा के प्रशासक पीतांबर मोल्फा के अनुसार, गुरुवार से धार्मिक अनुष्ठानों और संतों के प्रवचनों की श्रृंखला आरंभ हो चुकी है। केशव प्रयाग में अलकनंदा और सरस्वती का संगम इस आयोजन का मुख्य स्थल है।

वेदव्यास, रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य की भूमि

माणा वही स्थान है जहां महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी। यही नहीं, दक्षिण भारत के महान संत रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य ने भी यहीं मां सरस्वती से ज्ञान प्राप्त किया था। यह तीर्थस्थल न केवल उत्तर भारत, बल्कि पूरे भारत की वैदिक चेतना का प्रतीक है।

Pushkar Kumbh badrinath Mana village More than 10000 devotees took a holy dip in Pushkar Kumbh Watch Photos

क्यों महत्वपूर्ण है सरस्वती नदी का तट?

-वैदिक ज्ञान की धारा का उद्गम स्थल

-दक्षिण भारत के संतों का तपस्थल

-मोक्षदायिनी मानी जाती है सरस्वती नदी

माणा में चल रहा पुष्कर कुंभ न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह उन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कड़ियों को भी जोड़ता है, जो हजारों वर्षों से भारतीय परंपरा में जीवित हैं। यहां आकर श्रद्धालु न केवल अपने पितरों का तर्पण कर रहे हैं, बल्कि आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी पुण्य अर्जित कर रहे हैं।

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