देहरादून | 29 जुलाई 2025
जहाँ एक पिता अपने बेटे की शहादत को गम में डूबकर बिता देता है, वहीं ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) पीएस गुरुंग ने उसे देश सेवा का मिशन बना लिया। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना से लड़ते हुए अपने 25 वर्षीय बेटे लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग को खोने वाले इस वीर पिता ने बेटे की शहादत को तस्वीरों तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने उसे युवाओं को राष्ट्र सेवा की राह दिखाने वाले आंदोलन में बदल दिया।
शहादत बनी प्रेरणा, नहीं थमी सेवाभाव की राह
बेटे की शहादत के बाद ब्रिगेडियर गुरुंग ने तय किया कि वह युवाओं को सेना और खेलों के लिए तैयार करेंगे। 2006 में उन्होंने “शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग ट्रस्ट” की स्थापना की और देहरादून के गढ़ी कैंट स्थित गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज में एक मुक्केबाजी प्रशिक्षण शिविर शुरू किया। आज यह सिर्फ एक प्रशिक्षण केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति और अनुशासन की पाठशाला बन चुका है।
80 की उम्र में भी फौलादी जज़्बा
80 वर्ष की उम्र में जहां लोग आराम की चाह रखते हैं, वहीं ब्रिगेडियर गुरुंग हर सुबह 5 बजे उठकर युवाओं को बॉक्सिंग और सेना में भर्ती के लिए तैयार करते हैं। उनका कहना है कि, “बेटे के बलिदान ने मेरी जिंदगी का मकसद बदल दिया। अब हर बच्चा मेरे लिए उसी बेटे जैसा है।”
100 से अधिक युवा बन चुके हैं वर्दीधारी
अब तक इस शिविर से 100 से अधिक युवा सेना और अर्धसैनिक बलों में भर्ती हो चुके हैं, जबकि कई राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीत चुके हैं। वर्तमान में करीब 70 छात्र इस प्रशिक्षण शिविर में अनुशासन, चरित्र निर्माण और राष्ट्रभक्ति की शिक्षा के साथ-साथ मुक्केबाजी का प्रशिक्षण ले रहे हैं।
ट्रस्ट का संचालन खुद की पेंशन से
ब्रिगेडियर गुरुंग ने बताया कि इस ट्रस्ट को वह खुद की पेंशन से संचालित करते हैं। किसी प्रकार की बाहरी सहायता या फंडिंग नहीं ली गई है। उनका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि युवा राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित हों।
“हर बच्चे की सफलता मुझे ऊर्जा देती है”
ब्रिगेडियर गुरुंग कहते हैं, “जब कोई बच्चा सेना में भर्ती होता है या मेडल जीतकर लौटता है, तो मुझे लगता है कि मेरा बेटा मेरे साथ है। हर बच्चे की सफलता मेरी ऊर्जा बढ़ा देती है। यही भावना मुझे आगे बढ़ने की ताकत देती है।”
बेटी भी बढ़ाएगी मिशन को आगे
अब उनकी बेटी भी इस मिशन को आगे ले जाने का संकल्प ले चुकी है। गुरुंग परिवार का उद्देश्य स्पष्ट है—देश को ऐसे युवा देना जो न केवल शारीरिक रूप से सशक्त हों, बल्कि मानसिक और नैतिक रूप से भी राष्ट्र के प्रति समर्पित हों।
यह सिर्फ एक पिता की कहानी नहीं, बल्कि एक मिशन है—जिसने शहादत को श्रद्धांजलि से आगे बढ़ाकर, सैकड़ों युवाओं के जीवन को दिशा दी है।
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