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मसूरी का भद्रराज मंदिर बना अनुशासन का प्रतीक: अब अमर्यादित वस्त्रों में नहीं मिलेगा प्रवेश, मंदिर समिति का नया फरमान

मसूरी | 17 जुलाई 2025

उत्तराखंड के पछवादून क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध भद्रराज मंदिर में अब श्रद्धालुओं को मर्यादित वस्त्रों में ही प्रवेश मिलेगा। मंदिर समिति ने एक अहम निर्णय लेते हुए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत छोटे या अमर्यादित वस्त्र पहनकर आने वालों को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। ज़रूरत पड़ने पर मंदिर समिति धोती उपलब्ध कराएगी।


भद्रराज मंदिर: धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का केंद्र

  • यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलभद्र (बलराम) को समर्पित है।
  • समुद्र तल से 7,267 फीट की ऊंचाई पर, मसूरी से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है।
  • हर वर्ष 16-17 अगस्त को भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

नए नियम क्या हैं?

भद्रराज मंदिर समिति (बिन्हार जौनपुर, मसूरी) ने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया है कि वे मंदिर में मर्यादित और पारंपरिक वस्त्र पहनकर ही आएं।

निषेध वस्त्र वैकल्पिक समाधान
मिनी स्कर्टधोती दी जाएगी
नाइट सूटधोती दी जाएगी
कटी-फटी जींसधोती दी जाएगी
ऑफ पेंट, शॉर्ट्सधोती दी जाएगी

समिति के अनुसार, आचरण और परिधान दोनों में मर्यादा आवश्यक है, क्योंकि यह स्थान एक सिद्धपीठ है, जहां संस्कारों और संस्कृति की गरिमा बनी रहनी चाहिए।


समिति का बयान

राजेश नौटियाल, अध्यक्ष भद्रराज मंदिर समिति ने बताया:

“मंदिर एक पवित्र स्थल है। यहां का वातावरण भक्तिभाव से ओतप्रोत होना चाहिए। श्रद्धालु जैसे किसी बड़े आयोजन या मंदिर में मर्यादा के साथ जाते हैं, वैसे ही यहां भी वस्त्रों में शालीनता होनी चाहिए।”


श्रद्धालुओं को जागरूक करने की योजना

  • मंदिर परिसर के बाहर सूचनात्मक बोर्ड लगाए जाएंगे
  • सोशल मीडिया और लोकल न्यूज चैनलों के माध्यम से जन-जागरूकता अभियान
  • मेला आयोजनों में नियमों की सख्ती से निगरानी

धार्मिक पर्यटन और संस्कृति का संतुलन

यह फैसला सिर्फ परिधान से जुड़ा नहीं, बल्कि धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है।
उत्तराखंड के कई अन्य मंदिरों में भी इसी तरह की व्यवस्थाएं लागू हैं, जिससे मंदिरों का पवित्र वातावरण बना रहे।


न्यूज पोर्टल विश्लेषण:
भद्रराज मंदिर समिति का यह निर्णय स्वागतयोग्य है, खासकर तब जब धार्मिक स्थलों पर कभी-कभी पर्यटन की आड़ में मर्यादाएं टूटती हैं। यह कदम धार्मिक भावना के साथ सामाजिक अनुशासन का भी प्रतीक है।

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