हिंदू पौराणिक कथाओं में, कुंभ का महत्व समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से गहराई से जुड़ा हुआ है – देवताओं (देवों) और राक्षसों (असुरों) द्वारा अमृत, अमरता के अमृत की खोज में समुद्र का मंथन। इस पौराणिक कथा के अनुसार, अमृत को धारण करने के लिए एक दिव्य कुंभ (घड़ा) बनाया गया था। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, कहा जाता है कि इस पवित्र अमृत की बूँदें चार सांसारिक स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन पर गिरी थीं जिनमें से प्रत्येक पवित्र भूमि बन गई और कुंभ मेले के लिए स्थल के रूप में उपयोग होने लगी।
पौराणिक कथाओं से परे, कुंभ वस्तुतः मानव जीवन की आंतरिक यात्रा का प्रतीक है। जिस तरह यह बर्तन अमरता का अमृत धारण करता है, उसी तरह यह मानव शरीर को आत्मा के पात्र के रूप में दर्शाता है, जो अनंत क्षमता और दिव्य सार से भरपूर है। आध्यात्मिक संदर्भ में, कुंभ ज्ञानोदय का एक रूपक है – परम सत्य और मुक्ति (मोक्ष) की प्राप्ति।