देहरादून | 18 नवंबर 2025
उत्तराखंड में गुलदारों की सटीक संख्या का अभी तक स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। यही वजह है कि गुलदार के हमलों से निपटने के लिए प्रभावी योजनाएँ धरातल पर पूरी तरह लागू नहीं हो पा रही हैं।
गुलदार: चालाक और मनुष्य के स्वभाव के अनुरूप रणनीति बदलने वाला शिकारी
प्रसिद्ध शिकारी और वन्यजीव विशेषज्ञ लखपत सिंह रावत का कहना है कि गुलदार अत्यंत चतुर होता है।
वह मनुष्य के व्यवहार और गतिविधियों को भाँपकर अपनी रणनीति बदल लेता है।
ऐसे में मनुष्य को भी उसके साथ सह-अस्तित्व का तरीका सीखना होगा।
मानव-वन्यजीव संघर्ष पर चर्चा
‘मानव-वन्यजीव संघर्ष: चुनौती और समाधान’
विषय पर आयोजित दैनिक जागरण विमर्श में रावत ने वर्चुअली जुड़कर कहा—
“गुलदार से बचाव का सबसे बड़ा मूलमंत्र सावधानी और सतर्कता है।”
डर बढ़ाता आंकड़ा
जंगलों में रहने वाले वन्यजीव अब गांव-शहर तक पहुँच रहे हैं।
वर्ष 2000 से अब तक:
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1264 लोग मारे गए
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6516 लोग घायल हुए
इन घटनाओं में सबसे अधिक हमले गुलदार के नाम दर्ज हैं।
गांव खाली, पशुधन कम—गुलदार को मिल रहे छिपने के ठिकाने
रावत के अनुसार:
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पहाड़ों में सियार की संख्या कम होने से प्राकृतिक नियंत्रण कमजोर हुआ
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पशुधन में कमी से गुलदार भोजन की तलाश में आबादी की ओर बढ़ रहा
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बंजर खेत और झाड़ियां उसके छिपने के अड्डे बन रही हैं
इसलिए अब लोगों को बचाव के तौर-तरीके सीखकर सतर्क रहना होगा।
अनुभव जो बताते हैं गुलदार की चतुराई
रावत ने उदाहरण साझा किए—
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2002, आदिबदरी: लोग वाद्य यंत्र बजाकर भगाते थे
→ गुलदार ने रणनीति बदलकर वही समय चुना जब वाद्य यंत्र बजता था, और हमला किया -
2010–2014, डीडीहाट:
→ उसने शराब के नशे में घर लौटने वालों को ही निशाना बनाया
→ 16 लोगों को शिकार बनाया -
आदमीखोर होने पर मीलों दूर जाकर हमला करके भ्रमित भी करता है
केवल गुलदार ही नहीं—भालू का खतरा भी बढ़ा
रावत ने बताया:
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इस वर्ष बरसात लंबी होने से भालू के भोजन में कमी हुई
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मक्का और फसलें खाने वह आबादी तक आ रहा है
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6 किमी दूर से मांस, शहद और सड़ी गंध सूँघ लेता है
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अक्टूबर में भंकोर फल पकने पर जंगल लौटता है
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लेकिन मांस का चस्का उसे इंसानी बस्तियों के करीब बनाए रखता है
क्या करें? विशेषज्ञ के सुझाए समाधान
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गुलदारों की सुनियोजित गणना की जाए
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अधिक घनत्व वाले क्षेत्रों से रेस्क्यू और शिफ्ट किया जाए
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महिलाओं-बच्चों को व्यवहार संबंधी जागरूकता दी जाए
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गांव के मुख्यमार्ग पर पहले और अंतिम घर में अतिरिक्त सतर्कता
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शाम 6 से 8 बजे तक बच्चे घर में ही रहें
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जंगल में चारा लेने समूह में जाएं
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खेत में काम करते समय एक व्यक्ति निगरानी पर रहे
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सिर के पीछे मुखौटा लगाना भी कारगर
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स्कूली पाठ्यक्रम में गुलदार से बचाव के उपाय शामिल हों
वन्यजीवों के हमले: जनवरी 2000 से 17 नवंबर 2025 तक
| वन्यजीव | मृतक | घायल |
|---|---|---|
| गुलदार | 546 | 2126 |
| हाथी | 230 | 234 |
| बाघ | 106 | 134 |
| भालू | 71 | 2009 |
| साँप | 260 | 1056 |
| जंगली सूअर | 30 | 663 |
| बंदर-लंगूर | 0 | 211 |
| मगरमच्छ | 9 | 44 |
| ततैया | 10 | 16 |
| अन्य | 2 | 23 |
निष्कर्ष
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष लगातार बढ़ रहा है।
गांव खाली होने और जंगल मानव बस्तियों तक बढ़ने के कारण खतरा और गहरा हो चुका है।
यदि समाज सतर्कता अपनाए और सरकार मजबूत नीति बनाए—
“तो मनुष्य भी सुरक्षित रहेगा और गुलदार भी।”
सह-अस्तित्व ही भविष्य का रास्ता है।


