दिनांक: 4 अक्टूबर 2025 | स्थान: देहरादून, उत्तराखंड
देहरादून। भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने रेडियो कॉलर की मदद से बाघों के व्यवहार पर एक दीर्घकालिक अध्ययन किया है, जिसने जंगल के राजा की जीवनशैली और उसकी आदतों के कई नए राज खोले हैं।
अध्ययन में पाया गया कि बाघ दिन के मुकाबले रात और भोर के समय अधिक सक्रिय रहते हैं। वहीं, जब वे वन क्षेत्र से निकलकर मानव बस्तियों या खेतों के आसपास पहुंचते हैं तो उनकी गति तेज और दिशा सीधी हो जाती है, मानो वे उस इलाके को शीघ्र पार करना चाहते हों।
2016 से 2022 तक चला अध्ययन, 15 बाघों को लगाया गया रेडियो कॉलर
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने महाराष्ट्र वन विभाग के सहयोग से यह अध्ययन पूर्वी विदर्भ क्षेत्र में वर्ष 2016 से 2022 तक किया।
इस दौरान 15 बाघों और बाघिनों पर रेडियो कॉलर लगाए गए, ताकि उनके पल-पल के मूवमेंट और व्यवहार पर निगरानी रखी जा सके।
रेडियो कॉलर के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों से स्पष्ट हुआ कि बाघों की गतिविधि मुख्यतः रात 8 बजे से सुबह 6 बजे के बीच रहती है।
वहीं, दिन में 9 से 11 बजे तक वे आराम करते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे गर्म तापमान में कम सक्रिय रहते हैं।
तापमान और मानव उपस्थिति का सीधा असर
अध्ययन में यह भी सामने आया कि बाघों का विचरण 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में अधिक होता है।
जब तापमान बढ़ता है, तो वे गहरे जंगलों या पानी के स्रोतों के नजदीक रहना पसंद करते हैं।
इसके अलावा, जैसे ही वे मानवीय गतिविधियों वाले इलाकों (जैसे खेत या बस्तियों) में प्रवेश करते हैं, उनकी चाल तेज और सीधी हो जाती है।
यह व्यवहार इस बात का संकेत है कि बाघ ऐसे क्षेत्रों में असहज महसूस करते हैं और जल्दी निकल जाना चाहते हैं।
बाघिन अधिक संवेदनशील — नहीं छोड़ी अपनी सीमा
अध्ययन में शामिल WII के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिलाल हबीब ने बताया कि बाघिनों ने अध्ययन अवधि के दौरान अपनी टेरिटोरियल बाउंड्री नहीं छोड़ी, वे अधिकतर अपने निर्धारित क्षेत्र में ही रहीं।
इसके विपरीत, नर बाघों को अपने इलाकों की सीमाओं से बाहर जाते हुए देखा गया।
इससे यह निष्कर्ष निकला कि बाघिनें अपने क्षेत्र को लेकर अधिक संवेदनशील होती हैं, जबकि नर बाघों का इलाका अक्सर बड़ा होता है और वे नए क्षेत्र तलाशने के लिए बाहर निकलते हैं।
शावक से वयस्क होने तक के व्यवहार का अध्ययन
इस शोध का मुख्य उद्देश्य यह समझना था कि जब शावक वयस्क बनते हैं तो उनका व्यवहार कैसे बदलता है।
अध्ययन के परिणामों ने स्पष्ट किया कि बाघ अपने वयस्क जीवन में स्थिरता की ओर बढ़ते हैं —
वे एक निश्चित इलाका चुनते हैं, वहीं शिकार करते हैं और धीरे-धीरे उस क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते हैं।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मिलेगी मदद
डॉ. हबीब ने बताया कि इस तरह के व्यवहारिक अध्ययनों से मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है।
यदि बाघों के मूवमेंट पैटर्न, समय और क्षेत्र की सही जानकारी हो, तो
वन विभाग पहले से सतर्क रह सकता है और मानव आबादी वाले क्षेत्रों में उनके प्रवेश को रोकने के उपाय कर सकता है।
निष्कर्ष: जंगल का राजा समझदार भी और सतर्क भी
इस अध्ययन ने यह साबित किया है कि बाघ न केवल शक्तिशाली हैं बल्कि अत्यंत रणनीतिक और अनुकूलनशील जीव भी हैं।
वे अपने परिवेश, तापमान और मानव उपस्थिति के अनुसार अपने व्यवहार को बदल लेते हैं।
रेडियो कॉलर की तकनीक ने बाघों की गुप्त दिनचर्या पर से परदा उठाया है —
और यह समझने में मदद की है कि जंगल का यह राजा रात और भोर के सन्नाटे में ही सबसे ज्यादा सहज महसूस करता है।