लालकुआं / बरेली, 23 सितंबर 2025
लालकुआं तहसील के बबूर गुमटी क्षेत्र के समाजसेवी व प्रॉपर्टी डीलर महेश जोशी का सोमवार को बरेली के श्री रम मूर्ति अस्पताल में निधन हो गया। महेश ने तहसील कार्यालय में जहर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया था; अस्पताल में उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। मृतक के जेब से मिले सुसाइड नोट की पङ्घियाँ — जिनमें एक पटवारी पूजा रानी का नाम लेते हुए परेशान करने की बातें लिखी थीं — ने इलाके में तीव्र आक्रोश भड़काया। परिजन और ग्रामीण न्याय की मांग को लेकर कोतवाली के बाहर शव रखकर प्रदर्शन करने पर मजबूर हो गए।
रविवार-सोमवार की रात से लालकुआं की गलियाँ सन्नाटे और शोक में डूबी रहीं; वहीं सुबह–शाम दोनों समय गुस्सा भी दिखाई दिया। मौत की सूचना मिलते ही परिजन बेसुध हो गए और ग्रामीण आक्रोशित हो उठे। शाम करीब पांच बजे जब महेश का शव लालकुआं कोतवाली पहुँचा तो शव को कोतवाली के गेट पर रख कर लोग नारेबाजी करने लगे — “महेश को न्याय दिलाओ”, “दोषियों को सजा दो” जैसे नारों के साथ भीड़ ने अपना रोष व्यक्त किया।
परिजनों और ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पटवारी पूजा रानी ने महेश को बार-बार परेशान किया। मृतक के जेब से जो सुसाइड नोट मिला, उसमें स्पष्ट लिखा है: “मैं अपनी इच्छा से आत्महत्या कर रहा हूँ। इसमें मेरे घर या बाहर वाले का कोई कसूर नहीं है। लालकुआं की पटवारी पूजा रानी ने मुझे काफी परेशान किया है। मेरे मरने के बाद इंसाफ दिला देना…” यही पंक्तियाँ लोगों के लिए दर्दनाक और आक्रोश बढ़ाने वाली साबित हुईं।
भीड़ को शांत करने के लिए पुलिस, स्थानीय विधायक और मजिस्ट्रेट भी मौके पर पहुंचे। सिटी मजिस्ट्रेट गोपाल सिंह चौहान ने कहा कि छह ग्रामीणों के विरोध की सूचना पर वह लालकुआं कोतवाली पहुँचे और वार्ता कर समझाया गया। चौहान ने बताया कि मामले में FIR दर्ज कर ली गई है, पटवारी को मुख्यालय से अटैच (हटा कर) कर दिया गया है और जांच समिति का गठन कर दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जांच में संलिप्तता पाई जाती है तो विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
रात करीब नौ बजे न्याय की मांग कर रहे लोगों को जब पटवारी पूजा रानी से पूछताछ का मोबाइल स्क्रीन पर वीडियो दिखाया गया तो आक्रोश धीमा पड़ा और ग्रामीणों ने शव उठाकर आगे की प्रक्रियाओं के लिए सहमति दी। बावजूद इसके, परिवार और इलाके में सवाल और पीड़ा बरकरार हैं — वे इस तथ्य से संतुष्ट नहीं कि महेश अब हमारे बीच नहीं रहे और वे न्याय चाहते हैं।
परिवार की आपबीती भी मार्मिक है: रिपोर्ट के मुताबिक महेश को लोग ‘बबूर गुमटी’ वाले कहकर जानते थे — वह झगड़े-परिश्रम में भी लोगों के साथ खड़े रहने वाले माने जाते थे। उनका जाना इलाके के लिए सिर्फ एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि सामाजिक मददगार का खोना है।
निष्कर्ष
महेश जोशी की मौत और उसके साथ मिला सुसाइड नोट गंभीर सवाल उठाता है — क्या यह वाकई आत्महत्या थी या किसी के उत्पीड़न/दबाव के चलते मजबूरी? पटवारी के खिलाफ परिवार व ग्रामीणों का शक, पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करना, पटवारी को मुख्यालय अटैच करना और जांच कमेटी बनना — ये कदम महत्वपूर्ण हैं, पर जनता अब परिणाम चाहती है। क्षेत्र में बढ़ते सामाजिक असमंजस और प्रशासन पर दबाव स्पष्ट हैं: सत्य-निष्पक्ष जांच कर दोषियों को बेस्ड-ऑन-प्रूफ सजा दिलाना ही अब एकमात्र भरोसा बाकी रखता है।