देहरादून, 1 जून 2025:
पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील उत्तराखंड में अब एक्सपायर्ड और अप्रयुक्त दवाओं के निस्तारण को लेकर एक ठोस और सुनियोजित व्यवस्था लागू की जा रही है। राज्य में पहली बार ‘हरित स्वास्थ्य प्रणाली’ (Green Health System) लागू की जाएगी, जिसके तहत दवाओं के निर्माण से लेकर निस्तारण तक की प्रक्रिया को वैज्ञानिक, पारदर्शी और जिम्मेदार ढंग से संचालित किया जाएगा।
राज्य सरकार ने शुरू की तैयारी, सीडीएससीओ के निर्देशों पर अमल
राज्य सरकार ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के दिशा-निर्देशों को अपनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। स्वास्थ्य सचिव एवं एफडीए आयुक्त डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के निर्देश पर यह पहल की जा रही है। उनका कहना है कि अब तक दवाओं के निस्तारण को लेकर कोई सुसंगत प्रणाली नहीं थी, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक असर पड़ता था।
“उत्तराखंड जैसे पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील राज्य में यह चुनौती और भी गंभीर हो जाती है। हम अब इसे एक व्यवस्थित प्रणाली के तहत नियंत्रित करने जा रहे हैं।” — डॉ. आर. राजेश कुमार
हर स्तर पर तय होगी जवाबदेही
अपर आयुक्त एफडीए एवं ड्रग कंट्रोलर ताजबर सिंह जग्गी ने जानकारी दी कि अब निर्माता कंपनियों, थोक और खुदरा विक्रेताओं, अस्पतालों और आम उपभोक्ताओं — सभी की जवाबदेही तय की जाएगी।
नई व्यवस्था में:
- थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया जाएगा।
- स्थानीय ड्रग इन्फोर्समेंट यूनिट्स निगरानी करेंगी।
- ड्रगिस्ट्स एंड केमिस्ट्स एसोसिएशन को टेक-बैक प्रणाली से जोड़ा जाएगा।
- जिलों में टास्क फोर्स गठित होंगे।
- ई-ड्रग लॉग सिस्टम से रीयल-टाइम डेटा की निगरानी और ऑडिट किया जाएगा।
अब नागरिक जमा करा सकेंगे एक्सपायर्ड दवाएं
स्वास्थ्य विभाग की योजना के अनुसार, उत्तराखंड के शहरी, अर्ध-शहरी और पर्वतीय क्षेत्रों में ड्रग टेक-बैक साइट्स स्थापित की जाएंगी। इन केंद्रों पर नागरिक अपने घरों में पड़ी अप्रयुक्त, एक्सपायर्ड या खराब हो चुकी दवाएं जमा करा सकेंगे। इन दवाओं को फिर वैज्ञानिक ढंग से संग्रहित कर प्रोसेसिंग यूनिट्स में निस्तारित किया जाएगा।
जन-जागरूकता होगी अभियान का अहम हिस्सा
सरकार इस पूरी व्यवस्था के साथ-साथ व्यापक जन-जागरूकता अभियान भी चलाएगी, ताकि आम जनता भी इस हरित पहल में सक्रिय भागीदारी निभा सके।
विशेष जानकारी:
यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि स्वास्थ्य सुरक्षा और जिम्मेदार दवा प्रबंधन के लिए भी एक उदाहरण बन सकती है।