देहरादून/हरिद्वार: उत्तराखंड में बहुचर्चित हरिद्वार जमीन घोटाले ने राज्य प्रशासन में हलचल मचा दी है। इस मामले में दो युवा आईएएस अफसरों — कर्मेन्द्र और वरुण चौधरी — पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि दोनों को ही हाल ही में पहली बार बड़ी फील्ड जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं, लेकिन जमीन खरीद में गड़बड़ी के आरोपों ने उनके दामन पर दाग लगा दिया।
कौन हैं ये अधिकारी?
IAS कर्मेन्द्र (बैच 2011)
उत्तर प्रदेश कैडर से 2020 में उत्तराखंड आए कर्मेन्द्र शांत स्वभाव के माने जाते हैं। इससे पहले वे उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में सचिव और बाद में अपर सचिव कार्मिक जैसे अहम पदों पर रह चुके हैं। बतौर जिलाधिकारी हरिद्वार यह उनकी पहली फील्ड पोस्टिंग थी। मूलरूप से गोरखपुर निवासी कर्मेन्द्र को सीधे ही राज्य के सबसे संवेदनशील जिलों में से एक — हरिद्वार — की कमान दी गई थी।
IAS वरुण चौधरी (बैच 2017)
दिल्ली निवासी वरुण चौधरी ने हरिद्वार में सिटी मजिस्ट्रेट और ऋषिकेश में एसडीएम जैसे पदों पर काम किया है। इसके अलावा वे पिथौरागढ़ और चमोली के मुख्य विकास अधिकारी रह चुके हैं। हाल ही में उन्हें नगर निगम हरिद्वार के नगर आयुक्त की जिम्मेदारी सौंपी गई थी — और उसी कार्यकाल के दौरान यह विवादास्पद जमीन सौदा हुआ।
निलंबन की जद में PCS अफसर
घोटाले में निलंबित किए गए PCS अधिकारी अजयवीर भी 2017 बैच के हैं। वे इससे पहले श्रीनगर, कीर्तिनगर और हाल ही में भगवानपुर में एसडीएम के पद पर कार्यरत थे। हरिद्वार एसडीएम रहते हुए उनकी भूमिका भी इस विवादास्पद सौदे में सामने आई है।
जमीन घोटाले का मामला क्या है?
हरिद्वार नगर निगम ने ग्राम सराय क्षेत्र में 2.3070 हेक्टेयर कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदा। जबकि जांच में सामने आया कि उस जमीन की बाजार कीमत सिर्फ 15 करोड़ रुपये थी। खरीद से पहले अधिकारियों ने लैंड यूज को कृषि से बदलकर कॉमर्शियल कर दिया — जिससे जमीन की कीमत कृत्रिम रूप से बढ़ाई गई।
सबसे अहम बात यह है कि इस जमीन को किस उद्देश्य से खरीदा गया, यह आज तक स्पष्ट नहीं हो सका है।
अब तक की कार्रवाई
- राज्य सरकार ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं।
- संबंधित अधिकारियों की भूमिका की विभागीय जांच शुरू हो चुकी है।
- घोटाले से जुड़े दस्तावेज और निर्णयों की गहन समीक्षा की जा रही है।
क्या बोले जानकार?
प्रशासनिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी बड़ी संपत्ति की खरीद में नियमों की अनदेखी और भूमि उपयोग में बदलाव बिना उच्चस्तरीय मिलीभगत के संभव नहीं। यह मामला न सिर्फ नौकरशाही की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि राज्य सरकार की पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
यह एक हाई-प्रोफाइल मामला बन चुका है, और इसकी हर परत पर नजर रखना जरूरी है। आगे की कार्रवाई और जांच के परिणामों के लिए जुड़े रहें।