Uttarakhand News | बीपीएड-एमपीएड बेरोजगारों की पीड़ा: 15 साल से नौकरी की आस, हल्द्वानी में जताई इच्छा मृत्यु की मांग
हल्द्वानी/देहरादून: उत्तराखंड में लंबे समय से बेरोजगारी की मार झेल रहे बीपीएड (B.P.Ed) और एमपीएड (M.P.Ed) डिग्रीधारी प्रशिक्षित युवाओं का धैर्य अब जवाब देने लगा है। हल्द्वानी में बुधवार को इन युवाओं ने जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन कर सरकार से इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली। उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजते हुए कहा कि अब आश्वासनों से नहीं, रोजगार से ही राहत मिलेगी — अन्यथा “इच्छा मृत्यु” ही अंतिम विकल्प है।
क्या है पूरा मामला?
बीपीएड और एमपीएड डिग्रीधारक प्रशिक्षित युवा पिछले 15 वर्षों से नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार और शिक्षा विभाग से कई बार गुहार लगाने के बावजूद आज तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। बेरोजगारों का कहना है कि:
- नई शिक्षा नीति 2020 में हर स्कूल में शारीरिक शिक्षक की नियुक्ति अनिवार्य की गई है।
- बावजूद इसके, सरकार ने अब तक एक भी भर्तियां शुरू नहीं कीं।
- 2006 से पहले इन डिग्रीधारकों को विशिष्ट बीटीसी के जरिए प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किया जाता था, लेकिन अब वो रास्ता भी बंद हो गया।
बेरोजगारी ने तोड़ी हिम्मत
प्रदर्शनकारी युवाओं का कहना है कि लगातार उपेक्षा, बेरोजगारी और आर्थिक तंगी के कारण वे मानसिक रूप से टूट चुके हैं। कई साथी अवसाद में जा चुके हैं, और कुछ नौकरी की तलाश में उम्र पार कर चुके हैं।
संगठन के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश चंद्र पांडे के नेतृत्व में पहुंचे युवाओं ने चेताया कि यदि जल्द ही कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई, तो वे सामूहिक आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर होंगे।
ज्ञापन में रखी ये मांगें:
- नई शिक्षा नीति के तहत शारीरिक शिक्षकों की जल्द भर्ती।
- बीपीएड/एमपीएड डिग्रीधारकों के लिए स्पष्ट रोजगार नीति।
- पुरानी विशिष्ट बीटीसी प्रणाली को पुनः लागू करना।
- राज्य के हर प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल में फिजिकल एजुकेशन शिक्षक की नियुक्ति।
प्रदर्शन में शामिल प्रमुख लोग:
हरेंद्र खत्री, अनिल राज, सुमन सिंह नेगी, अर्जुन लिंगवाल, महेश नेगी, भुवनेश बिष्ट, पंकज वसु, रजत बसु, गोविंद सिंह, मुन्ना मेहरा, दीपक जोशी, आलोक शाह, गिरीश मिश्रा सहित कई युवा प्रदर्शन में शामिल रहे।
निष्कर्ष:
उत्तराखंड में शिक्षित युवाओं की यह पीड़ा सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करती है। नई शिक्षा नीति में शारीरिक शिक्षा को अहमियत देने के बावजूद इस दिशा में भर्ती प्रक्रिया शुरू न होना सरकार की मंशा पर संदेह पैदा करता है। यदि जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो यह मामला और गहराता जा सकता है।
(इस मुद्दे पर हम आगे भी अपडेट देते रहेंगे। जुड़े रहें राज्य की शिक्षा और रोजगार से जुड़ी हर खबर के लिए।)