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देहरादून में कानून व्यवस्था पर उबाल: राज्य आंदोलनकारियों का चेतावनी भरा ऐलान — एक माह में सुधार नहीं तो करेंगे CM आवास घेराव

देहरादून | 8 जून 2025

उत्तराखंड में बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर राज्य आंदोलनकारी एक बार फिर सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैंराज्य आंदोलनकारी मंच ने पर्यटक स्थलों पर बढ़ती हुड़दंगबाज़ी, फुटपाथों पर अतिक्रमण, तेज प्रेशर हार्न, चोरी और महिलाओं से छेड़छाड़ जैसी घटनाओं पर गहरी नाराजगी जताते हुए डीजीपी को ज्ञापन सौंपने और एक महीने में कार्रवाई नहीं होने पर मुख्यमंत्री आवास घेराव की चेतावनी दी है।


 “हमने आदर्श राज्य का सपना देखा था, आज वो सपना चूर होता दिख रहा”

शहीद स्मारक हॉल में रविवार को हुई बैठक में वक्ताओं ने प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी पुष्पलता सिलमाणा और सत्या पोखरियाल ने कहा:

“हमने उत्तराखंड को शांतिपूर्ण, सुरक्षित और सुव्यवस्थित राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया था, लेकिन आज हालात बेहद चिंताजनक हैं।”


 चिंताओं की लिस्ट:

  • फुटपाथ और सड़कों पर ठेली/रिक्शा का अतिक्रमण

  • पर्यटक स्थलों पर नशाखोरी व हुड़दंग

  • तेज प्रेशर हार्न से ध्वनि प्रदूषण

  • शहरों में बढ़ती चोरी की घटनाएं

  • छात्रों और बाहरी लोगों का अपर्याप्त सत्यापन

  • लड़कियों से अभद्रता और छेड़छाड़


 क्या मांग कर रहे आंदोलनकारी?

  • प्रत्येक थाने को जवाबदेह बनाने की व्यवस्था

  • सभी ई-रिक्शा, ठेलियों पर कार्रवाई

  • फुटपाथ को पैदल चलने वालों के लिए मुक्त कराना

  • पर्यटक स्थलों पर सिविल पुलिस की तैनाती

  • बाहरी छात्रों और किरायेदारों का सख्त सत्यापन


 क्या होगा आगे?

राज्य आंदोलनकारी मंच के अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी ने कहा कि

“हाल ही में एसएसपी को ज्ञापन सौंपा गया था, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब हम जल्द ही डीजीपी को ज्ञापन देंगे और पुलिस को एक महीने का वक्त देंगे। इसके बाद भी अगर सुधार नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया जाएगा।”


 बैठक में मौजूद रहे:

रामलाल खंडूड़ी, गणेश डंगवाल, हरि मेहर, मनोज नौटियाल, चंद्रकिरण राणा, संतन सिंह रावत, गौरव खंडूड़ी, मोहन खत्री, सत्या पोखरियाल, तारा पांडे, राधा तिवारी आदि।


 निष्कर्ष:

उत्तराखंड के राज्य निर्माता अब कानून व्यवस्था को लेकर स्वयं हस्तक्षेप के मूड में हैं। सरकार और पुलिस प्रशासन के लिए यह एक साफ संकेत है कि अगर जनसंवेदनशील मुद्दों पर तत्काल कार्यवाही नहीं हुई, तो राजनीतिक और सामाजिक दबाव और तेज़ हो सकता है।

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