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राजाजी टाइगर रिजर्व को 10 साल बाद मिलेगा टाइगर कंजर्वेशन प्लान, एनटीसीए को भेजा गया प्रस्ताव

वन्यजीव संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड का बड़ा कदम

देहरादून | जून 2025

राजाजी टाइगर रिजर्व (RTR) में बाघों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बेहतर बनाने की दिशा में एक दशक बाद बड़ी पहल हुई है। राजाजी टाइगर कंजर्वेशन प्लान (TCP) तैयार कर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। अब मंजूरी के बाद यह प्लान राज्य के इस दूसरे टाइगर रिजर्व को वैज्ञानिक और संरक्षित प्रबंधन के तहत विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।


2015 में बना था टाइगर रिजर्व, 10 साल बाद तैयार हुआ प्लान

राजाजी टाइगर रिजर्व की स्थापना 2015 में राजाजी नेशनल पार्क और उससे सटे क्षेत्रों को मिलाकर की गई थी। लेकिन टाइगर कंजर्वेशन प्लान के अभाव में संरक्षित क्षेत्र में बाघ संरक्षण, प्रबंधन और निगरानी कार्यों में रुकावटें बनी रहीं। अब 10 वर्षों बाद यह प्लान आकार लेकर मंजूरी की अंतिम दहलीज पर है।


क्या है टाइगर कंजर्वेशन प्लान का उद्देश्य?

राजाजी टाइगर रिजर्व के लिए तैयार किए गए इस विस्तृत TCP का फोकस निम्न बिंदुओं पर है:

  • बाघों और अन्य वन्यजीवों का वैज्ञानिक प्रबंधन

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को न्यूनतम करना

  • जंगलों में जल स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करना

  • सशक्त निगरानी तंत्र (मॉनिटरिंग सिस्टम) का विकास

  • बाघों और हाथियों की संख्या का व्यवस्थित आंकलन


60 से अधिक बाघ, 5 नए बाघ कार्बेट से स्थानांतरित

रिजर्व की चीला, श्यामपुर, रवासन और गौहरी रेंजों में फिलहाल 60 से अधिक बाघ मौजूद हैं। वहीं, धौलखंड और मोतीचूर क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए कार्बेट टाइगर रिजर्व से 5 बाघों को स्थानांतरित किया गया है। इन क्षेत्रों में बेहतर आवास और संसाधनों की उपलब्धता देखी गई है।


अब तक क्यों रही देरी?

हालांकि कुछ समय पूर्व राजाजी टाइगर रिजर्व फाउंडेशन का गठन हुआ, लेकिन टाइगर कंजर्वेशन प्लान का प्रारूप बनाने में लगभग 10 वर्षों की देरी हुई। जानकारों के अनुसार, प्रशासनिक स्तर पर प्राथमिकता की कमी और संसाधनों का अभाव इसकी वजह रही।


क्या बोले अधिकारी?

आर.के. मिश्रा, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एवं प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव), उत्तराखंड ने बताया:

“प्लान में सभी कार्य वैज्ञानिक और रणनीतिक तरीके से होंगे। हमारी पूरी कोशिश है कि एनटीसीए से जल्द अनुमोदन मिल जाए। इससे बाघों के संरक्षण के साथ ही मानव-पशु संघर्ष और अन्य समस्याओं का समाधान निकाला जा सकेगा।”


आगे की राह

प्लान को एनटीसीए से स्वीकृति मिलने के बाद:

  • पूरे रिजर्व क्षेत्र में आधुनिक कैमरा ट्रैप, गश्ती निगरानी और GPS आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किए जाएंगे।

  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी से संरक्षण को जनांदोलन का रूप दिया जाएगा।

  • एंटी-पोचिंग, बायोलॉजिकल कॉरिडोर और इको-टूरिज्म को भी रणनीतिक रूप से बढ़ावा दिया जाएगा।


 राजाजी टाइगर रिजर्व में टाइगर कंजर्वेशन प्लान की स्वीकृति, न केवल बाघों बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक नई दिशा तय करेगी। उत्तराखंड में वन्यजीव संरक्षण को यह ऐतिहासिक दस्तावेज मजबूती देगा।

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