देहरादून | 19 जून 2025
उत्तराखंड में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कांग्रेस के लिए सिर्फ स्थानीय सत्ता की जंग नहीं, बल्कि मिशन 2027 की रणनीतिक प्रयोगशाला भी बन चुके हैं। सवाल यह है — क्या पार्टी सामूहिक नेतृत्व के भरोसे एकजुट होकर मैदान में उतरेगी या फिर पिछली हारों की तरह गुटबाजी और अंतर्विरोधों में उलझ जाएगी?
पृष्ठभूमि: सामूहिक नेतृत्व बनाम गुटीय खींचतान
पिछले लोकसभा चुनाव में सभी पांचों सीटों पर हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि अब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं नहीं, सामूहिक नेतृत्व ही पार्टी की प्राथमिकता है।
इस दिशा में पहला कदम रहा प्रदेश समन्वय समिति का गठन, जिसका उद्देश्य है— वरिष्ठ नेताओं के बीच सामंजस्य बनाना और चुनावों के दौरान सामूहिक निर्णय को प्राथमिकता देना।
हाल ही में पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं को दिल्ली बुलाकर ‘एकता और अनुशासन’ की क्लास दी गई। लेकिन क्या यह संदेश जमीनी स्तर पर उतर पाया है? पंचायत चुनाव इसका लिटमस टेस्ट होंगे।
चुनाव ढांचा: समर्थन और स्वतंत्रता का मिश्रण
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जिला पंचायत: कांग्रेस यहां पार्टी समर्थित प्रत्याशी मैदान में उतारेगी।
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क्षेत्र और ग्राम पंचायत: चुनाव खुला रखा गया है, यानी कांग्रेस नेता अपने-अपने पसंदीदा प्रत्याशियों को समर्थन दे सकते हैं।
इसका मतलब साफ है — नेताओं को खुद को साबित करने का मौका मिलेगा, लेकिन इससे आपसी टकराव और वर्चस्व की लड़ाई की संभावनाएं भी खुल जाती हैं।
मतदाता गणित और चुनावी प्रभाव
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पंचायत चुनाव में करीब 47.72 लाख ग्रामीण मतदाता भाग लेंगे।
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यह वही वर्ग है जो 2027 के विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
यानी पंचायत चुनाव कांग्रेस के लिए एक मिनी जनमत संग्रह साबित हो सकता है— खासतौर पर यह देखने के लिए कि जनता और जमीनी कार्यकर्ता किस नेता और किस खेमे पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।
चुनौतियां: टिकट बंटवारा, असंतोष और पुराने जख्म
जनवरी 2025 में हुए नगर निकाय चुनावों में टिकट वितरण को लेकर भारी खींचतान सामने आई थी। गुटबाजी को छुपाने की कोशिशें नाकाम रहीं और कांग्रेस एक भी नगर निगम नहीं जीत सकी।
अब यही संकट पंचायत चुनावों में फिर से सिर न उठाए, इसके लिए कार्यकर्ता और हाईकमान दोनों चिंतित हैं।
आधिकारिक बयान
“कांग्रेस पंचायत चुनाव में एकजुट होकर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार है। सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चुनाव से जुड़े निर्णय लिए जाएंगे।”
— करन माहरा, अध्यक्ष, उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी
क्या कहती है सियासी हवा?
पहलू | जोखिम | संभावना |
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सामूहिक नेतृत्व | कमजोर तालमेल, आंतरिक टकराव | बेहतर समन्वय तो विधानसभा की जमीन मजबूत |
खुला चुनाव मॉडल | गुटबाजी को बढ़ावा | क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत की सही परीक्षा |
मतदाता व्यवहार | ग्रामीण असंतोष या असंगठित रणनीति | भाजपा के मुकाबले विपक्ष को नया स्पेस |
निष्कर्ष: पंचायत चुनाव से तय होगी कांग्रेस की दिशा
पंचायत चुनाव कांग्रेस के लिए सिर्फ स्थानीय सत्ता का सवाल नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीतिक प्रासंगिकता की परीक्षा भी हैं।
अगर पार्टी इस बार वाकई एकजुट होकर प्रदर्शन कर पाती है तो यह मिशन 2027 के लिए एक मजबूत नींव बनेगी। वरना, असहमति और अस्थिरता की तस्वीर फिर से सामने आ सकती है।