तारीख: 23 जून 2025 | स्थान: देहरादून
उत्तराखंड का वन विभाग एक बार फिर सुर्खियों में है—कारण वही पुराना, शीर्ष पद पर बदलाव। बीते साढ़े चार वर्षों में विभाग को आठवीं बार नया मुखिया मिला है। इस बार डॉ. धनंजय मोहन के अचानक वीआरएस लेने के बाद समीर सिन्हा को प्रमुख वन संरक्षक (हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स – HOFF) का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
यह बदलाव न सिर्फ एक पद परिवर्तन है, बल्कि उत्तराखंड वन विभाग की व्यवस्थागत अस्थिरता की लंबी श्रृंखला का नया अध्याय है।
“जंगल का राजा” बनना आसान नहीं…
उत्तराखंड में वन विभाग के हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स की कुर्सी, जिसे आम बोलचाल में ‘जंगल का राजा’ कहा जाता है, बीते कुछ वर्षों में राजनीतिक और प्रशासनिक खींचतान की शिकार बन गई है। बार-बार हुए बदलावों से विभाग की कार्यशैली और निर्णयों की निरंतरता पर भी गहरा असर पड़ा है।
बीते साढ़े चार वर्षों में बदलावों की पूरी लिस्ट:
क्रम | अधिकारी | कार्यकाल विवरण |
---|---|---|
1 | जयराज | सेवानिवृत्त – अक्टूबर 2020 |
2 | रंजना काला | नवंबर 2020 – दिसंबर 2020 (2 माह) |
3 | राजीव भरतरी | जनवरी 2021 – नवम्बर 2021 (कार्बेट घोटाला उजागर) |
4 | विनोद कुमार सिंघल | नवम्बर 2021 – कोर्ट केस में नियुक्ति |
5 | राजीव भरतरी (दूसरी बार) | अप्रैल 2023 – मई 2023 |
6 | विनोद कुमार सिंघल (दूसरी बार) | मई 2023 – सेवानिवृत्ति (30 अप्रैल 2024) |
7 | डॉ. धनंजय मोहन | मई 2024 – जून 2025 (अचानक वीआरएस) |
8 | समीर सिन्हा (वर्तमान) | जून 2025 से अतिरिक्त प्रभार |
डॉ. मोहन का वीआरएस: निर्णय या दबाव?
डॉ. धनंजय मोहन को एक ईमानदार, कड़क और नीतिगत रूप से स्पष्ट अधिकारी के रूप में जाना जाता रहा है। उनका कार्यकाल छोटा होने के बावजूद विभाग में अनुशासन और पारदर्शिता की झलक दिखी। ऐसे में उनका 31 अगस्त 2024 से पहले दो महीने पहले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेना कई सवाल खड़े करता है।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक तेजतर्रार अधिकारी को कार्यकाल खत्म होने से पहले ही कुर्सी छोड़नी पड़ी? क्या इसके पीछे राजनीतिक दबाव था? या फिर आंतरिक असहमतियां?
अब सभी निगाहें समीर सिन्हा पर
समीर सिन्हा, एक सुलझे हुए लेकिन बेबाक आईएफएस अधिकारी माने जाते हैं। अपने स्पष्ट विचार और निर्णय लेने की क्षमता के लिए पहचाने जाते हैं। लेकिन अब उनकी असली परीक्षा शुरू हुई है—
- विभाग में स्थिरता लाना,
- पूर्व के विवादों से निपटना,
- और वन विभाग की डगमगाती छवि को फिर से मजबूती देना।
इस कुर्सी का इतिहास जितना अस्थिर रहा है, उतनी ही उम्मीदें अब समीर सिन्हा से जुड़ गई हैं।
बदलती छवि और विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल
बार-बार हुए नेतृत्व परिवर्तन से जहां नीतिगत फैसले अधर में लटकते रहे हैं, वहीं अधिकारियों की कार्यशैली पर भरोसे की कमी भी देखी जा रही है। कार्बेट पार्क में अवैध निर्माण, पातन घोटाला, ट्रांसफर विवाद जैसे मुद्दों ने विभाग की छवि को बार-बार झटका दिया है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड वन विभाग, जो कि राज्य के जैव विविधता और वन्य संरक्षण का सबसे अहम स्तंभ है, नेतृत्व की इस बार-बार बदलती व्यवस्था से जूझ रहा है। “जंगल का राजा” बनने की कुर्सी अब एक प्रतीक बन चुकी है—प्रभावशाली लेकिन अस्थिर।
क्या समीर सिन्हा इस कुर्सी को स्थिरता, विश्वास और पारदर्शिता दे पाएंगे?
इसका जवाब आने वाले महीनों में साफ होगा।
फिलहाल, उत्तराखंड वन विभाग की सबसे हाई प्रोफाइल कुर्सी पर एक और नया चैप्टर शुरू हो चुका है।