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Uttarakhand Panchayat Election 2025 | लड़ाई सिंबल की नहीं, सियासी समीकरणों की… अब गांव के आखिरी वोटर की परीक्षा

देहरादून, 24 जून 2025

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तारीखें जैसे ही घोषित हुईं, सियासी हलचलों ने रफ्तार पकड़ ली है। यह चुनाव भले ही राजनीतिक दलों के सिंबल पर न लड़ा जा रहा हो, लेकिन राजनीतिक दलों की ताकत और रणनीति की असली परीक्षा इसी चुनाव में होनी है। गांव, ब्लॉक और जिले की सत्ता का यह संघर्ष अब गांव के आखिरी आदमी के जनादेश से तय होगा।


सिंबल नहीं, सियासी बल की लड़ाई

उत्तराखंड के पंचायत चुनाव, अपने स्वरूप में गैर-राजनीतिक दिखने के बावजूद पूरी तरह राजनीतिक हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इन चुनावों को 2027 के विधानसभा चुनावों की नींव मानकर चल रहे हैं।
राजनीतिक दलों ने भले ही सीधे प्रत्याशी न उतारे हों, लेकिन गांव-गांव तक पहुंचकर अपनी विचारधारा के प्रतिनिधियों को जिताने की जंग शुरू कर दी है।


गांव के विकास के जरिए ‘विकसित भारत’ की नींव

सरकार का जोर अब इस बात पर है कि गांव मजबूत होंगे तभी भारत विकसित होगा।
राज्य में पलायन, भूस्खलन, जल संकट और मानव-वन्यजीव संघर्ष जैसी समस्याएं लगातार गांवों को खाली कर रही हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव सिर्फ सत्ता नहीं, गांव के भविष्य की दिशा तय करेंगे।


हाईकोर्ट की रोक बनी बाधा, लेकिन तैयारी पूरी

हाल ही में हाईकोर्ट ने आरक्षण आदेश पर रोक लगाई है, जिससे अधिसूचना फिलहाल स्थगित हो सकती है। लेकिन चुनावी तैयारी और रणनीति पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है।
बैठकों का दौर, प्रत्याशियों की छंटनी, और ग्राम स्तर पर तालमेल का काम जारी है।


भाजपा के लिए साख की लड़ाई

  • 13 में से 11 जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा के पास
  • शहरी निकाय चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन
  • भाजपा उन्हीं चेहरों को आगे ला रही है जो जिताऊ हों और पार्टी विचारधारा के साथ खड़े नजर आएं।
  • ये चुनाव भाजपा सरकार के कामकाज की परख और जनता के विश्वास का टेस्ट होंगे।

कांग्रेस को चाहिए खोई हुई जमीन

  • लंबे समय से कांग्रेस पंचायतों में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है।
  • अब केंद्रीय नेतृत्व की सख्ती के बाद नेताओं में एकता दिखाई दे रही है।
  • पंचायत चुनाव को कांग्रेस ‘भाजपा बनाम कांग्रेस’ की सीधी लड़ाई में बदलना चाहती है।
  • अगर कांग्रेस पंचायत स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर पाती है, तो 2027 में विधानसभा की जमीनी तैयारी पूरी मानी जाएगी।

बात आंकड़ों से आगे की है

पंचायत चुनावों में भले ही कोई सिंबल नहीं, पर इस बार लड़ाई गांव को बसाए रखने की, बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचाने की और राजनीतिक ताकत को ग्राम स्तर तक मजबूत करने की है।


विशेष टिप्पणी
“सियासत गांव के दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है। पंचायत चुनाव के नतीजे न सिर्फ गांवों की दशा-दिशा तय करेंगे, बल्कि राज्य की अगली राजनीति का रोडमैप भी।”

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