प्रमुख सचिव ऊर्जा ने सभी जिलाधिकारियों को भेजा जांच आदेश, योजना में ‘पहले आओ-पहले पाओ’ का नहीं हुआ पालन
देहरादून, 26 जून 2025
उत्तराखंड में बेरोजगारों और प्रवासियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना अब गंभीर गड़बड़ी के आरोपों में घिर गई है। खुलासा हुआ है कि इस योजना का लाभ आम जनता को देने के बजाय सरकारी अधिकारियों ने खुद या अपने रिश्तेदारों के नाम पर सोलर प्लांट लगवा लिए।
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रमुख सचिव ऊर्जा आर. मीनाक्षी सुंदरम ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को विशेष जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं।
योजना की मूल भावना पर पड़ा आघात
मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना को खासतौर पर कोविड-19 के बाद लौटे प्रवासी, बेरोजगार युवा, लघु व सीमांत किसान, और स्थानीय उद्यमियों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए लागू किया गया था। योजना के तहत 20 किलोवाट से लेकर 200 किलोवाट तक के सोलर प्लांट लगवाने की सुविधा है। इसके साथ मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत सब्सिडी का भी प्रावधान है।
आरोप: योजना में हितों का टकराव
प्रमुख सचिव ने पत्र में कहा है कि विभिन्न जिलों से शिकायतें मिली हैं कि अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए स्वयं या अपने परिवारजनों के नाम पर सोलर प्रोजेक्ट स्वीकृत करा लिए। इससे हितों के टकराव (Conflict of Interest) की स्थिति पैदा हो गई है।
इतना ही नहीं, योजना के तहत किए गए प्रोजेक्ट आवंटनों में ‘पहले आओ, पहले पाओ’ नीति का भी पालन नहीं किया गया है।
सभी आवंटनों की होगी समीक्षा, नियमविरुद्ध मामलों में सब्सिडी रोकी जाएगी
प्रमुख सचिव ने निर्देश दिया है कि अब तक हुए सभी आवंटनों की जांच कराई जाए, और अगर किसी जिले में अनियमितता पाई जाती है, तो उन आवंटियों की राज्य अनुदान (सब्सिडी) तुरंत बंद की जाएगी। इस बाबत महानिदेशक, उद्योग विभाग को भी पत्र भेजा गया है।
मजबूत प्रक्रिया को भी किया नजरअंदाज
इस योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकार ने तकनीकी समिति, जिला स्तरीय आवंटन समिति, और डीएम/सीडीओ की निगरानी में आवंटन प्रक्रिया सुनिश्चित की थी। बावजूद इसके, शिकायतें सामने आना व्यवस्था में गंभीर चूक को दर्शाता है।
अब क्या होगा?
- सभी जिलों में सौर परियोजनाओं के आवंटनों की पुनः समीक्षा होगी
- नियमों का उल्लंघन पाए जाने पर सब्सिडी रोकी जाएगी
- दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति संभव
योजना पारदर्शी होनी चाहिए, न कि अधिकारी-परिवारों की संपत्ति बढ़ाने का जरिया। जनता की योजनाओं में गड़बड़ी पर जवाबदेही तय करना अब जरूरी हो गया है।