हरिद्वार। श्रावण मास की शुरुआत के साथ ही धर्मनगरी हरिद्वार एक बार फिर शिवमय हो गई है। आज से शुरू हुई कांवड़ यात्रा के पहले ही दिन हजारों की संख्या में शिवभक्त गंगाजल लेने हर की पैड़ी पहुंचे। पूरे शहर में “बम-बम भोले” और “हर हर महादेव” के जयघोष गूंज रहे हैं।
क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व?
श्रावण मास में शिवभक्तों द्वारा भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करने की परंपरा सदियों पुरानी है।
- कांवड़िये हर की पैड़ी से गंगाजल भरकर अपने-अपने शहरों और गांवों के शिवालयों में जलाभिषेक करने निकलते हैं।
- उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं।
- यह यात्रा श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से चतुर्दशी तक चलती है।
शिवभक्ति की तीन पवित्र यात्राएं
श्रावण मास में भगवान शिव को समर्पित तीन प्रमुख यात्राएं होती हैं:
- कांवड़ यात्रा (हरिद्वार से गंगाजल लाना)
- अमरनाथ यात्रा
- कैलाश मानसरोवर यात्रा
तीनों यात्राएं कठिन तप का प्रतीक मानी जाती हैं, लेकिन इनका आध्यात्मिक फल भी उतना ही महान होता है।
धार्मिक मान्यता और कनखल का ऐतिहासिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रावण मास में भगवान शिव दक्षेश्वर रूप में हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में एक माह तक निवास करते हैं।
यह वही स्थान है जहां राजा दक्ष ने यज्ञ किया था और जहां सती ने अपने प्राण त्यागे थे। इसीलिए यह स्थान शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
कब चढ़ाया जाएगा गंगाजल?
इस वर्ष शिवभक्त 23 जुलाई (बुधवार) को शिव चौदस के अवसर पर अपने-अपने शिवालयों में गंगाजल अर्पित करेंगे।
इस बार की खास बात यह है कि एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथियां एक साथ पड़ रही हैं, जिससे त्रयोदशी का क्षय हो रहा है।
हरिद्वार बना शिवलोक जैसा दृश्य
हरिद्वार की सड़कों पर रंग-बिरंगे कांवड़िये, जयकारों की गूंज और जगह-जगह लगाई गई भंडारों और शिविरों ने शहर को उत्सवमय बना दिया है। प्रशासन ने यात्रियों की सुविधा के लिए विशेष इंतज़ाम किए हैं, और सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद है।
बम बम बोले!
कांवड़ यात्रा न केवल श्रद्धा का परिचायक है, बल्कि यह आत्मिक अनुशासन, सेवा और तप की मिसाल भी है।
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