कैमरा ट्रैप, इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग और वैज्ञानिक सर्वे से तय होगी राज्य के टाइगर्स की वास्तविक संख्या
देहरादून, 26 जुलाई 2025 – उत्तराखंड में बाघों की गणना की तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है। वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की देखरेख में अक्टूबर से राज्यभर में बाघ आकलन का पहला चरण शुरू किया जाएगा। कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक साकेत बडोला के अनुसार, तीन चरणों में इस वैज्ञानिक प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा।
बाघ सर्वे के तीन चरण: जानिए कैसे होता है टाइगर आकलन
पहला चरण – साइंस सर्वे (इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग)
अक्टूबर से शुरू होने वाला पहला चरण “इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग” कहलाता है, जिसमें वन कर्मी जंगलों में घूमकर बाघों और अन्य वन्यजीवों की उपस्थिति के प्रमाण जैसे पदचिह्न, मल-मूत्र, खरोंच आदि दर्ज करते हैं। ये फील्ड डाटा सीधे डब्ल्यूआईआई को भेजा जाएगा।
दूसरा चरण – डेटा एनालिसिस
डब्ल्यूआईआई इन डाटा बिंदुओं का विश्लेषण करेगा और संभावित बाघ मूवमेंट और संख्या का पूर्वानुमान लगाएगा।
तीसरा चरण – कैमरा ट्रैप सर्वे
इसके बाद जंगलों में विशेष पैटर्न में कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे। इनसे प्राप्त फोटोग्राफिक डेटा को पुनः डब्ल्यूआईआई को सौंपा जाएगा, जो बाघों की पहचान कर अंतिम रिपोर्ट जारी करेगा।
पिछली रिपोर्ट में उत्तराखंड के बाघों की संख्या 560
“स्टेटस ऑफ टाइगर्स, को-प्रीडेटर्स एंड प्रे इन इंडिया – 2022” रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में बाघों की संख्या 560 थी। इस वर्ष की गिनती में यह देखा जाएगा कि राज्य में बाघों की संख्या में क्या बदलाव हुआ है। इसके लिए हाल ही में डब्ल्यूआईआई में राजाजी, कार्बेट और अन्य टाइगर रिजर्व के निदेशकों की क्षेत्रीय बैठक भी हो चुकी है।
कैमरा ट्रैप और ट्रेनिंग की तैयारियां भी शुरू
कार्बेट निदेशक साकेत बडोला ने बताया कि कार्यशाला के दौरान वन विभाग से कैमरा ट्रैप की स्थिति, डाटा एकत्रीकरण तकनीक और फील्ड टीम की ट्रेनिंग पर विशेष चर्चा की गई। सभी रेंज अधिकारियों और फील्ड स्टाफ को वैज्ञानिक तरीके से बाघों के चिन्ह और मूवमेंट रिकॉर्ड करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
यह बाघ आकलन न सिर्फ संरक्षण की दिशा में अहम कदम है, बल्कि यह पूरे देश में उत्तराखंड की जैव विविधता की स्थिति का भी महत्वपूर्ण संकेत देगा।