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उत्तराखंड में जुलाई की बारिश: बागेश्वर में झमाझम, देहरादून और अल्मोड़ा में फिसड्डी; औसत से 16% कम बरसे बादल

देहरादून | उत्तराखंड में जुलाई 2025 का मानसून बेहद असमान और क्षेत्रीय रूप से भिन्न रहा। एक तरफ बागेश्वर जैसे पहाड़ी जिलों में आसमान से पानी खूब बरसा, वहीं दूसरी ओर देहरादून और अल्मोड़ा जैसे क्षेत्रों में बादल सीमित ही मेहरबान रहे। राज्यभर में इस माह औसतन 417.8 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन वास्तव में सिर्फ 349.9 मिमी ही बारिश हुई — यानी कुल 16% की कमी

हालांकि पूरे मानसून सीजन (1 जून से अब तक) की बात करें, तो अब तक की बारिश लगभग सामान्य रही है, और अगस्त में अच्छी वर्षा की संभावना जताई गई है।


जुलाई की वर्षा: आंकड़ों की नजर से

जिलावास्तविक वर्षा (मिमी)सामान्य (मिमी)अंतर (%)
बागेश्वर676.5274.2+147%
नैनीताल622.5566.1+10%
रुद्रप्रयाग564.2552.6+2%
पिथौरागढ़328.0263.5+24%
चमोली328.0263.5+24%
पौड़ी गढ़वाल481.1445.4+8%
ऊधमसिंह नगर303.4292.6+4%
हरिद्वार352.6356.6-1%
अल्मोड़ा266.4274.2-3%
टिहरी337.6420.6-20%
उत्तरकाशी292.3411.7-29%
देहरादून337.6486.2-31%
चंपावत263.5473.8-44%

किसे ज्यादा भीगा मानसून, कहां रहा सूखा

  • सबसे अधिक वर्षा:
    बागेश्वर ने सबसे अधिक वर्षा दर्ज की — 676.5 मिमी, जो सामान्य से 147% अधिक रही।
  • सबसे कम वर्षा:
    चंपावत और देहरादून में मानसून सुस्त रहा। चंपावत में 44% की कमी, जबकि राजधानी देहरादून में 31% कम वर्षा हुई।
  • अल्मोड़ा भी वर्षा के लिहाज से पीछे रहा, जहां सिर्फ 266.4 मिमी बारिश दर्ज की गई — सामान्य से थोड़ा ही कम।

मानसून सीजन अब तक सामान्य

हालांकि जुलाई में औसतन वर्षा कम रही, फिर भी 1 जून से अब तक राज्य में कुल 590 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जबकि सामान्य 594 मिमी होनी चाहिए थी। यानी मौसम अब तक संतुलित ही रहा है।

  • बागेश्वर मानसून सीजन में भी टॉप पर है — 1250.7 मिमी, यानी 197% अधिक।
  • चमोली (639 मिमी)* और चंपावत (460.1 मिमी)* में भी क्रमशः 74% और 25% की बढ़त देखी गई।
  • हरिद्वार (-41%)**, ऊधमसिंह नगर (-33%) और नैनीताल (-15%)* में बारिश औसत से कम रही।

क्या कहता है आगे का मौसम?

मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार, अगस्त में सामान्य से अधिक वर्षा होने की उम्मीद है। ऐसे में जुलाई की भरपाई अगले महीने हो सकती है। खासकर मैदानी जिलों के लिए राहतभरी खबर हो सकती है जहां अब तक कम वर्षा हुई है।


निष्कर्ष:

उत्तराखंड में इस बार का मानसून अनिश्चित, लेकिन चिंताजनक नहीं रहा है। ऊपरी हिमालयी जिलों में मेघों की मेहरबानी, जबकि मैदानी इलाकों में सूखा-सा माहौल रहा। अब उम्मीद है कि अगस्त में बादल सबकी प्यास बुझाएंगे।

आगे के हफ्ते मानसून की चाल पर होगी नजर — किसानों, पर्यटकों और आम जनता की उम्मीदें बादलों से जुड़ी हैं।

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